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साहित्य का मूल धर्म है सबका भला करना

इंदौर (मप्र)।

साहित्य का मूल धर्म है सबका भला करना। रचनाकारों को इस मूल धर्म को ध्यान में रखकर रचनाधर्मिता करना चाहिए। भाषा के उपयोग में सावधानी रखना चाहिए।
यह बात वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. पद्मा सिंह ने विचार प्रवाह साहित्य मंच द्वारा शनिवार शाम को आयोजित पुरस्कार वितरण और रचना पाठ कार्यक्रम में अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए कही। मुख्य अतिथि शिक्षाविद डाॅ. संगीता भारूका ने नारा लेखन का महत्व बताते हुए कहा कि नारा उत्साह का संचार करता है। सभी आंदोलन में नारों की बड़ी भूमिका रही है। विशेष अतिथि वरिष्ठ लेखिका श्रीमती अमिता मराठे थीं।

अतिथियों को स्मृति चिन्ह श्रीमती माधुरी व्यास और डाॅ. प्रणव श्रोत्रिय आदि ने दिए। प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कृत किया गया। मौजूद रचनाकारों ने पिता पर लिखी अपनी रचनाओं का पाठ किया। संचालन मंच के अध्यक्ष मुकेश तिवारी ने किया। आभार महासचिव श्रीमती अर्चना मंडलोई ने माना।

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