दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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प्रभु तुम कोई ऐसी जगह बता दो,
जहां पे मैं चैन का सुकून पा सकूं
मतलब की इस दुनिया से दूर हो,
तेरे नाम का सुमिरन मैं कर सकूं।
पग-पग भरे हैं ये ठोकर और काँटें,
जरा मैं इन सबसे बचकर रह सकूं
झूठ फरेब वाली इस दुनिया से दूर,
कोई अलग ही दुनिया मैं बना सकूं।
लूट-खसोट मचा इस जग संसार में,
अपनेपन की कोई बस्ती बना सकूं
रिश्ते हो रहे हैं अब तार-तार यहां पर,
नहीं कोई जिसे सच्चा रिश्ता कह सकूं।
नकली आँसू बहा रहे हैं अब लोग,
सत्य कैसे कहां अब पहचान सकूं
इंसा-इंसा लड़ रहे हैं जाति-धरम में,
कोई नहीं है जिसे मैं इंसा कह सकूं।
कलियाँ भी अब डर रही खिलने से,
भंवरे को भी अपना कैसे कह सकूं।
कारण करावनहार तो तुम ही हो प्रभु,
‘दीनेश’ को मैं कुछ भी कह ना सकूं॥
प्रभु तुम…॥