संजीव एस. आहिरे
नाशिक (महाराष्ट्र)
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धीरे-धीरे संध्या बिल्ली के कदमों से कब जमीं पर उतर आई, पता ही नहीं चला। दूर पश्चिम की देहरी पर कुछ सिंदूरी बादल अभी भी रेंग रहे हैं। सूरज के पदचिन्ह संजोते क्षितिज अभी भी अपना रंग धारण किए हुए है। दूर-दूर तक फैली मक्का, बाजरा, सोयाबीन के विस्तीर्ण फैले खेतों पर संध्या का उतरना एक विस्मयकारी और रोमांचित कर देनेवाला अनुभव है। अब अँधेरे के झुरमुट फसलों का रोंया-रों या छूने लगे हैं। खेतों की तलहटी पर फैली गजब की शान्ति में और इजाफा होकर शान्ति इतनी सघन होती जा रही है कि संध्या की पदचापों की आहट भी सुनाई-सी देने लगी है। इस शान्तिभरे माहौल में बीचों-बीच बहती नदी के बाँध से घसीटते पानी की आवाजें सुनाई पड़ने लगी हैं.. वाह! प्रपात की आवाज़ भी क्या आवाज़ होती है। संध्या समय की विभोर वेला में यह संगीत भरती जा रही है। संध्या विदा होते-होते न जाने किस किसको क्या बताती जा रही है! फूलों की पंखुरिया बंद करते-करते कलियों से कल फिर मिलने का वादा करके हौले-हौले विलीन होती जा रही है।
खेतों के बीचों-बीच गुजरती पगडंडियाँ और कच्ची सडक से मैं नदिया के संगीत की टोह लेता धीरे-6धीरे नदिया की ओर चल पड़ा हूँ। मेरी आहट पाकर गाने वाले पंछियों की एक टोली वहाँ से उड़कर पास के बाजरे के खेतों में घुस अदृश्य हो गई। भली शाम में सब मिलकर ये पंछी जाने कौन-सा गाना गा रहे थे…! थोड़ा आगे चला तो मयूरों का समूह, जिसमें बहुत सारे लम्बी पूँछ वाले नर ज्यादा और बिना पूँछ की मादाएं कम थी;बड़ी तेजी से सड़क से लगी झाड़ियों में गुम हो गया। चलते हुए नजरें उठाकर सामने देखा तो ४-५ भारद्वाज बड़े मनोहर ढंग से गेरूआ पंख फैलाते उड़कर जा रहे थे। भारद्वाजों के उड़ने का अंदाज देखकर सहसा मुझे कुएँ के छोर पर लटकती डालियों पर घोंसला बुनने वाले बया पंछियों की याद हो आई। कितने सलीके से एक-एक तिनका बुन रही थी वो बयाएं… कैसी विलक्षण कारीगरी…! वाकई, इन बया पंछियों का कोई तोड़ नहीं। सृष्टि का अजीब कारीगर है ये बया पंछी…। सोंचते-सोंचते नदिया का किनारा कब आ पहुंचा, पता ही नहीं चला…। कैसे मुग्ध कर देने वाले जल प्रपात है ये, प्रपातों से उभरते संगीत की धाराओं ने आज की इस संध्या क़ो कितना सुरमई और अनुपम बना दिया है। अपने-आप ही मेरे कदम तट पर ठिठक गए और उस संगीत में अपने-आप को खो बैठा हूँ। अब लौटती हुई संध्या की पायल के घुँघरूओं की आवाज मुझे मोहती जा रही है। मैं इस गहन शांति में अपने-आपको विलीन होता पा रहा हूँ। मैं प्रकृति के साथ तदाकार होता जा रहा हूँ… अपने अस्तित्व को प्रकृति में विलीन करता हुआ… नि:शब्द, निस्तब्ध, निश्छल, निरामय…।
परिचय-संजीव शंकरराव आहिरे का जन्म १५ फरवरी (१९६७) को मांजरे तहसील (मालेगांव, जिला-नाशिक) में हुआ है। महाराष्ट्र राज्य के नाशिक के गोपाल नगर में आपका वर्तमान और स्थाई बसेरा है। हिंदी, मराठी, अंग्रेजी व अहिराणी भाषा जानते हुए एम.एस-सी. (रसायनशास्त्र) एवं एम.बी.ए. (मानव संसाधन) तक शिक्षित हैं। कार्यक्षेत्र में जनसंपर्क अधिकारी (नाशिक) होकर सामाजिक गतिविधि में सिद्धी विनायक मानव कल्याण मिशन में मार्गदर्शक, संस्कार भारती में सदस्य, कुटुंब प्रबोधन गतिविधि में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ विविध विषयों पर सामाजिक व्याख्यान भी देते हैं। इनकी लेखन विधा-हिंदी और मराठी में कविता, गीत व लेख है। विभिन्न रचनाओं का समाचार पत्रों में प्रकाशन होने के साथ ही ‘वनिताओं की फरियादें’ (हिंदी पर्यावरण काव्य संग्रह), ‘सांजवात’ (मराठी काव्य संग्रह), पंचवटी के राम’ (गद्य-पद्य पुस्तक), ‘हृदयांजली ही गोदेसाठी’ (काव्य संग्रह) तथा ‘पल्लवित हुए अरमान’ (काव्य संग्रह) भी आपके नाम हैं। संजीव आहिरे को प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अभा निबंध स्पर्धा में प्रथम और द्वितीय पुरस्कार, ‘सांजवात’ हेतु राज्य स्तरीय पुरुषोत्तम पुरस्कार, राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार (पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार), राष्ट्रीय छत्रपति संभाजी साहित्य गौरव पुरस्कार (मराठी साहित्य परिषद), राष्ट्रीय शब्द सम्मान पुरस्कार (केंद्रीय सचिवालय हिंदी साहित्य परिषद), केमिकल रत्न पुरस्कार (औद्योगिक क्षेत्र) व श्रेष्ठ रचनाकार पुरस्कार (राजश्री साहित्य अकादमी) मिले हैं। आपकी विशेष उपलब्धि राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार, केंद्र सरकार द्वारा विशेष सम्मान, ‘राम दर्शन’ (हिंदी महाकाव्य प्रस्तुति) के लिए महाराष्ट्र सरकार (पर्यटन मंत्रालय) द्वारा विशेष सम्मान तथा रेडियो (तरंग सांगली) पर ‘रामदर्शन’ प्रसारित होना है। प्रकृति के प्रति समाज व नयी पीढ़ी का आत्मीय भाव जगाना, पर्यावरण के प्रति जागरूक करना, हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु लेखन-व्याख्यानों से जागृति लाना, भारतीय नदियों से जनमानस का भाव पुनर्स्थापित करना, राष्ट्रीयता की मुख्य धारा बनाना और ‘रामदर्शन’ से परिवार एवं समाज को रिश्तों के प्रति जागरूक बनाना इनकी लेखनी का उद्देश्य है। पसंदीदा हिंदी लेखक प्रेमचंद जी, धर्मवीर भारती हैं तो प्रेरणापुंज स्वप्रेरणा है। श्री आहिरे का जीवन लक्ष्य हिंदी साहित्यकार के रूप में स्थापित होना, ‘रामदर्शन’ का जीवनपर्यंत लेखन तथा शिवाजी महाराज पर हिंदी महाकाव्य का निर्माण करना है।