सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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सुवासित रंग प्रीति का डाल,
हो गया मुख प्रभात का लाल
सुहागिन सजा सुंदरी भाल,
बाल कवि निकला मले गुलाल।
अरुण मुख सुषमा को अवलोक,
अति सरस सुंदर दिवस विलोक
कपोलों पर अलकों की महक,
तरंगित रस बरसा की झलक।
मौन सिमटी जाती है रात,
जीर्ण कंपित हैं पीपल पात
सरसि में है कुछ नूतन बात,
खिले सुरभित कोमल परिजात।
सजा कर विविध कला का थाल,
रंग सपनों के प्यारे डाल।
मुदित मन गीत सजे सुर-ताल,
करो तुम खुद को मालामाल॥