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सौतेली माँ

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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क्या बहुत बुरी होती है सौतेली माँ ?
आर्थिक कमजोर घर की पढ़ी-लिखी,उम्रदराज सुघढ़ युवती,दस-बारह साल के धनाढ्य २ बेटे-बेटी की सौतेली माँ बन कर आती है।
नाना-नानी मौसी मामा से गुरुमंत्र प्राप्त बच्चे,माँ नहीं उसे दुश्मन मानते हैं। उपेक्षा,अवहेलना,घृणा, झेलते घर की मुफ्त की नौकरानी बन जीती रही, जीती रही…। पहली पत्नी की याद और बात के अलावा पति के पास और कुछ नहीं।
घर की हर गलती पर ताने-डांट,बड़े हो चुके बच्चों का रूखा व्यवहार,हाथ उठाना,लड़ाई-झगड़े,ऊपर से पति का नशेड़ी,उद्दंड बच्चों की तरफ़दारी,पानी सिर से ऊपर पहुँच चुका है…।
सौतेली माँ मायके की ओर निहारती है। माँ-पिता कर्तव्य निर्वहन कर अंनत नींद सो गए। भाई-बहन अपनी गृहस्थी का भारी बोझ किसी तरह ढो रहे हैं।
सौतेली माँ आज बाथरूम में सोई है,कभी-कभी बाथ टब सुख-शांति की अंतिम नींद देने के लिए आरामदायी बिस्तर बन जाता है।

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।