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सौभामिनी-करवा

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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सौम्य सोम की शीत रश्मि से,
आँचल अपना भर लेंगी।
प्रेम पयोधि पी कर पी कर से,
तृप्त आचमन कर लेंगी॥

बांधेगी विधु को छलनी के,
सूक्ष्म परिधि के भीतर ही
अर्ध्य धार देंगी सारी,
आज धरा की वैदेही।

देंगी चुनौती अप्सराओं को,
ठहरो अभी संँवर लेंगी…॥

जिनके पी परदेश पधारे,
पी छवि शशी में ढूंढेगी
सुमन सुधाकर को कर अर्पित,
स्मृति सूत्र में गूंथेंगी।

दीप जला सब मधुर स्मित का,
पीर विरह तम हर लेंगी…॥

नीलगगन की गहन नीरवता,
रव भरा गान गूँजेगा
रोली अक्षत रखा हाथ सब,
आशीष रस से भिंजेगा।

पी के अमरता का सिंदूर,
झुका शीश पर धर लेंगी…॥

परिचय-ममता तिवारी का जन्म १ अक्टूबर १९६८ को हुआ है और जांजगीर-चाम्पा (छग) में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती ममता तिवारी ‘ममता’ एम.ए. तक शिक्षित होकर ब्राम्हण समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य (कविता, छंद, ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नित्य आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो विभिन्न संस्था-संस्थानों से आपने ४०० प्रशंसा-पत्र आदि हासिल किए हैं।आपके नाम प्रकाशित ६ एकल संग्रह-वीरानों के बागबां, साँस-साँस पर पहरे, अंजुरी भर समुंदर, कलयुग, निशिगंधा, शेफालिका, नील-नलीनी हैं तो ४५ साझा संग्रह में सहभागिता है। स्वैच्छिक सेवानिवृत्त शिक्षिका श्रीमती तिवारी की लेखनी का उद्देश्य समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।