कुल पृष्ठ दर्शन : 27

स्तरीय आधुनिक लघुकथा का अध्ययन करना चाहिए, दायरा विशाल होगा

पटना (बिहार)।

अधिकांश लघुकथाकारों ने अच्छा प्रयास किया है, किंतु उन्हें जानकारों से राय-परामर्श अवश्य लेनी चाहिए। कुछ रचनाओं में बेहद पुराना और घिसा-पिटा विषय दोहराया गया है। स्तरीय आधुनिक लघुकथा का अध्ययन करना चाहिए, इससे उनकी कल्पना का दायरा विशाल होगा। प्रबुद्ध रचनाकार आलोचना से नहीं डरते, बल्कि सार्थक आलोचना का स्वागत करते हैं।
यह विचार लघुकथा सप्ताह में प्रस्तुत लघुकथाओं पर अपने विचार प्रकट करते हुए वरिष्ठ कथाकार और लघुकथाकार योगराज प्रभाकर ने अध्यक्ष के नाते व्यक्त किए। भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में साहित्य पाठशाला-सह कार्यशाला में संयोजक सिद्धेश्वर ने संचालन के क्रम में कहा कि
लघुकथा आंदोलन चल रहा था, उस वक्त ही तमाम विद्वान साहित्यकारों ने लघुकथा को शब्द सीमा से बांधना शुरू किया था। मेरा विचार है यदि शब्द संख्या पर ध्यान ना दिया जाए, तब निश्चित तौर पर लघुकथा भटकाव या अतिक्रमण की स्थिति में आ जाती है। एक आदर्श लघुकथा, मात्राओं के जोड़-घटाव के बिना भी प्रस्तुत की जा सकती है। जिस तरह कविता के लिए कोई शब्द सीमा की बाध्यता नहीं है, इसी प्रकार लघुकथा के लिए भी शब्द सीमा की बाध्यता नहीं है। लघुकथा का आकार-प्रकार देखकर पढ़ने वाले ढेर सारे पाठक लंबी लघुकथाओं को पढ़ने का साहस नहीं जुटा पाते। जब लंबी चीज ही पढ़नी हो तो वह छोटी कहानी, कहानी अथवा उपन्यास ना पढ़े ?
अगस्त माह में आयोजित इस कार्यशाला की प्रभारी ऋचा वर्मा रहीं। इसमें अपनी लघुकथा एवं विचार प्रस्तुत करने वालों में प्रमुख श्री प्रभाकर, अनिता रश्मि, जीनत शेख, मंजू सक्सेना, सीमा रानी और डॉ. पुष्पा जमुआर आदि रहे।