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स्नेह ज्योति से जीवन जगमगाए

बबिता कुमावत
सीकर (राजस्थान)
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दीप जलें, मन महके (दीपावली विशेष)…

दीप जले मन में, उजियारा हो जाए,
हर कोना प्रेम का, प्यारा हो जाए
अंधियारे दिल के तम सब मिट जाएँ,
स्नेह की ज्योति से जीवन जगमगाए।

मन के भीतर जो द्वेष की राख जमी,
उस पर करुणा की किरणें पड़ जाएँ
लालच, ईर्ष्या, क्रोध जहाँ पलते हैं,
वहाँ दया के दीप अगर जलते हैं।

दीप जले मन में, तो दिशा बदल जाए,
हर मानव में मानवता पनप जाए
स्वार्थ की दीवारें जब ढह जाती हैं,
तो रिश्तों में फिर खुशबू बस जाती है।

हर एक दीप हो सत्य का प्रतीक बने,
न्याय और नीति का संगीत बने
जो गिरा है उसे उठाने की चाह बने,
हर मन में संवेदना की राह बने।

दीप जले मन में, तो द्वेष न रहे,
हर एक हृदय में मधुर स्नेह बहे
भेदभाव, जाति का अंधकार मिटे,
समानता की लौ से संसार सजे।

जब भीतर का दीपक उजाला करेगा,
तो बाहर का अंधेरा भी पाला करेगा।
एक दीपक से लाखों दीप जल जाएँ,
प्रेम के संदेश से जग उजियाएँ।

चलो आज प्रतिज्ञा हम ये करें,
मन में दीप जलाकर, जग रोशन करें।
हर आँसू मुस्कान में ढल जाए,
जीवन दीप बन जाए।॥