सुनीता रावत
अजमेर(राजस्थान)
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इक उम्र से हूँ लज्जत-ए-गिर्या से भी महरूम,
तुम्हारी अनुपस्थितियों के आकाश में…
स्मृतियों का एक सितारा
टिमटिमाता है,
उस रौशनी की लकीर पकड़
मैं चल सकती हूँ…
अनवरत तय कर सकती हूँ।
दुनिया के दोनों गोलार्द्ध,
सातों समंदर
पाँचों महाद्वीप।
लेकिन तय नहीं कर पाती,
तुम्हारे पते तक की दूरी…
मेरी चिट्ठियाँ…॥