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स्वार्थ में खो गए

ममता साहू
कांकेर (छत्तीसगढ़)
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कहाँ गया रिश्तों से प्रेम…?

ज़िंदगी में केवल व्यावहारिक हो गए,
स्वार्थ में हम इतने खो गए
नहीं पूछता है किसी को कोई,
केवल अपना बोझा ढो गए।
पत्थर हुआ दिल और,
जज़्बात खामोश हो गए…।

पहले बता दिया करते थे सब,
अपने दिल की सारी बातें
कोई राज ना रहता था,
जीवन होता था खुली किताब,
ना जाने कहाँ वो खुली किताब खो गए।
पत्थर हुआ दिल और,
जज़्बात ख़ामोश हो गए…।

भाई-भाई में समस्या का,
समाधान कहाँ होता है ?
बाप और बेटे में उलझनों का,
निदान कहाँ होता है ?
माँ और बेटी में रसोई का,
सही भान कहाँ होता है ?
ये संस्कारों का कैसा,
बीज हम बो गए।
पत्थर हुआ दिल और,
जज़्बात ख़ामोश हो गए…॥