सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
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हक़ है… पूरा हक़ है,
इस धरती पर जीने का
सबको ही पूरा हक़ है।
ये नदी, पहाड़, ये अरण्य घनेरे,
ये फूल, तितलियाँ, ये पेड़-पौधे
जिसे हम बना नहीं सकते
फिर पूर्ण हक़ हमारा नहीं है,
ये इंसानों की जागीर नहीं है।
ये चींटी, हाथी, ये पशु-जानवर,
ये पंछी, पतंगे, ये नन्हें से कीट सब
नहीं मांगते जग में अपना हक़,
इनको भी धरा पर जीने का
हक़ है बराबर हक़ है।
ईश्वर की सुंदर दुनिया में,
जब जो आए, हँसकर जिए
भेदभाव, छीना-झपटी न करके
बराबरी से निश्चिंत जीने का,
हक़ है, सबको हक़ है।
ये चंदा… सूरज, ये जमीं… आसमां,
ये दिन सुनहरे, ये रात सितारे
ये खुली हवा, ये बरसती घटा,
इनपर धरती के सभ जीवों का
हक है… पूरा हक़ है।
अपना-तेरा छोड़, मिल-जुल कर,
किंचित भी नफरतें भुलाकर।
अच्छे मन के सहज भाव से,
भरपूर प्रेम-पूर्ण जीने का
हक़ है, सबका हक़ है॥