मुम्बई (महाराष्ट्र)।
अब अतीत में मत जियो। हमने बहुत त्याग किया है, जिसे तुमने इन किताबों में अच्छे से उकेरा है। हमने कुर्सी के लिए नहीं, आज़ादी के लिए सब कुछ त्याग दिया। अब तुम सत्ता के लिए लक्ष्य बनाए बिना राष्ट्र के लिए कुछ करो। सामाजिक कार्यकर्ता बनो। समाज-सेवा के लिए सत्ता की जरूरत नहीं, बल्कि देशभक्ति की भावना को प्रदीप्त करने की जरूरत है।
यह बात जेष्ठ स्वतंत्रता सेनानी डॉ. जी.जी. परिख ने डॉ. मीना श्रीवास्तव (मुम्बई) द्वारा प्रो. हेमंत सामंत के मूल लेखों से अनुवादित २ हिंदी पुस्तकों का विमोचन करते हुए कही। महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय के स्मृति दिवस के दिन प्रो. सामंत द्वारा अज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों और उनके कार्यक्षेत्र से संबंधित मराठी लेखों पर आधारित डॉ. श्रीवास्तव लिखित ‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अनदेखे समरांगण’ और ‘भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की अनकही कहानियाँ’ उक्त अनुवादित पुस्तकें केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी क्रांतिकारियों द्वारा किए हुए स्वतंत्रता संघर्ष को दर्शाती है। बड़े ही गर्व की बात रही कि शतक पार कर चुके बुजुर्ग सेनानी डॉ. पारिख ने मुंबई में ग्रांट रोड स्थित अपने आवास पर इन पुस्तकों का विमोचन किया। आयोजन में लेखक डॉ. श्रीवास्तव, मूल लेखक प्रो. सामंत व लुपिन कंपनी के मैन्युफॅक्चरिंग ऑपरेशन्स के अध्यक्ष राजेंद्र चुनोडकर उपस्थित रहे। डॉ. श्रीवास्तव ने बताया कि पुस्तक प्राप्ति हेतु सम्पर्क (९९२०१६७२११) कर सकते हैं। इस अवसर पर लेखकों के परिवार से एडव्होकेट आरती बॅनर्जी, शिक्षाविद् उज्ज्वल बॅनर्जी, अनुभूति बॅनर्जी और श्रीमती वृषाली सामंत भी मौजूद रहे।