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हमारे ७ शरीर, खुद को भी समय दीजिए

कपिल देव अग्रवाल
बड़ौदा (गुजरात)
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आध्यात्म और जीवन-भाग २…

आगे चलते हैं तो पाते हैं कि, हमारे ऋषि-मुनियों ने मानव शरीर की तुलना ब्रम्हाण्ड से की है। जब यह वक्तव्य पढ़ा, तो इस बात ने मुझे झकझोर दिया था। इतना छोटा-सा शरीर और उससे लाखों, करोड़ों गुना बड़ा विशाल अगणित, अनंत, ब्रहम्मांड ? मानव शरीर की तुलना ब्रह्माण्ड से ?, कैसे? जब इस बारे में जानना और समझना शुरू किया तो आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। अद्भुत परिणाम सामने आए। हमारे सूर्य की तुलना दीए से करने जैसा था। दोनों के स्वभाव और कार्य तो एक ही हैं। रौशनी द्वारा अँधेरे को मिटाना।
क्या आप जानते हैं कि, हमारे भीतर भी एक सूर्य है, जिसे चेतना कहते हैं, और एक अंग है जो सूर्य के ही समान है, जिसे ‘अग्न्याशय’ (पेन्क्रिआस) कहते हैं। एक्यूट पेन्क्रिआटाईटिस की बीमारी से जूझ चुका हूँ, इसालिए कह सकता हूँ कि यह अग्न्याशय नहीं, आग्नेयास्त्र है। दुनियाभर के वैज्ञानिक शोध में जुटे हैं, लेकिन ४० वर्ष के बाद भी इसे आज तक नहीं जान पाए। किसी उपकरण या किसी भी तरह इसे छुआ तक नहीं जा सकता। यह अंग अपने-आपमें एक बड़ा कारखाना है, जिसमें कई तरह के मिनरल्स, एन्जाईम, रसायन आदि का निर्माण होता रहता है, और यह अंग उन एन्जाईम्स को जहाँ जरूरत होती है, वहाँ पहुँचात़ा भी है। फिर यह अंग पूरे शरीर की तरंगों, संवेदनाओं को भी नियंत्रित करता है। इसका मिजाज बिगड़े तो पूरा शरीर हिल जाता है। इसे सामान्य होने में ३ वर्ष तो लग ही जाते हैं। इसके नाराज होते ही साँसें डगमगाने लगाती हैं। अब आप समझ सकते हैं इस अंग का नियंत्रण।
अरबों मील दूर हमारी आकाशगंगा, उसमें अरबों तारे, सूर्य, चन्द्र, गृह नक्षत्र आदि और कहते हैं ऎसी अरबों आकाशगंगा हमारे ब्रम्हाण्ड में घूम रही हैं। हमारे इस सूर्य से भी कई गुना बड़े सूर्य और हैं वहाँ। सब अपने-अपने क्षेत्र में अपने नियत स्थान में नियत वेग से घूम रहे हैं, और कभी किसी के आपस में टकराने या विघटन का कोई उदाहरण नहीं आज तक।
इतना असीम ब्रहम्मांड और उसमे अनगिनत आकाशगंगाएं, करोड़ों- अरबों पिंड, तारे आदि और इसको संचालित करने वाली उस विराट ऊर्जा शक्ति, जिसे समझ पाना बड़े-बड़े योगियों के लिए भी दुर्लभ है, उसी अनंत ऊर्जा का एक अंश, जिससे हमारा शरीर, कार्य-कलाप, जीवन, प्राण आदि संचालित हैं। इस अखंड, विराट और अनंत ऊर्जा की विशालता का वर्णन करना कितना कठिन है ! और उतना ही कठिन है हमारे इस शरीर की आध्यात्मिक शक्तियों को जानना और उन्हें पहचानना।
चिकित्सक लोग केवल भौतिक धरातल पर ही काम कर पाते हैं, और केवल भौतिकता को भी वे पूरी तरह समझ नहीं पाए हैं अभी तक, इसलिए शोध चलते रहते हैं। सैकड़ों वर्षों से ये शोध चल ही रहे हैं। आध्यात्मिक शरीर उनके बस का नहीं है।
कितने लोग जानते हैं कि, हम एक नहीं बल्कि ७ शरीर लेकर चलते हैं जीवन में, जिसमें १ भौतिक है, बाकी आध्यात्मिक शरीर हैं। उन्हीं ७ शरीरों के ७ चक्र हैं हमारे शरीर में, जिन्हें कुण्डलिनी चक्र के नाम से जाना जाता है। इन्हीं ७ शरीरों की रश्मि की आभा हमारे इस भौतिक शरीर के चारों ओर होती है, जिसे प्रभामंडल कहते हैं। इन शरीरों की संभावनाएं अनंत और विशाल हैं, शायद इसीलिए यह ब्रम्हांड से तुलनात्मक हो जाता है।
हमारे पूर्वजों ने हजारों वर्षों की साधना और तपस्या के बाद जो भी जाना, वही शास्त्रों में लिख दिया। इसलिए इसे ही सत्य माना जा सकता है, वरना हमारी इतनी क्षमता तो नहीं है। इसे जानना कठिन है, लेकिन असंभव भी नहीं है। उन योगियों के गणित का एक छोटा-सा उदाहरण देखिए-उनका समय १/३४००० सेकण्ड से शुरू होता था। इसे १ कृति कहते हैं। क्या आज के वैज्ञानिक अंदाज भी लगा सकेंगे, समय की इस सूक्ष्मता का ! फिर युग, महायुग, कल्प, प्रकल्प आदि करोड़ों-अरबों वर्ष का समय, जिसे ब्रम्हा का १ दिन बताया गया। बहुत अद्भुत है यह गणना और यही थी हमारी प्राचीन शिक्षा व्यवस्था, जिसे सुनियोजित षडयंत्र के तहत नष्ट किया गया। इस विषय पर हिन्दी में मेरी पुस्तक ‘आकाशगंगा’ में ऐसे अनेक उदाहरण दिए गए हैं, जो कारण हैं शरीर की ब्रम्हाण्ड से तुलना करने में। इसमें कई आश्चर्यजनक जानकारियाँ हैं।
किस तरह ये गृह, नक्षत्र, करोड़ों मील दूर से हमारे जीवन को, नित्य कार्य-कलापों को, दिनचर्या को, स्वभाव आदि को प्रभावित करते हैं। और किस तरह हम भी यहाँ से उनके इन प्रभावों को प्रभावित कर सकते हैं। हाँ, हममें भी वह शक्ति है। यदि आपकी जिज्ञासा जगे तो यही कह सकते हैं कि, मेरी बातों पर सोचिए अवश्य। हम अक्सर बाहर ही रहते हैं, अपने भीतर झाँकने का प्रयत्न ही नहीं किया। कभी खुद को भी समय दीजिए। सोचिए, क्या हमें अगली पीढ़ी को जीवन के इस नियम के बारे में बताना चाहिए।
अब एक छोटा-सा उपाय, जिससे यह सोच जगाना आसान हो सकता है। मेरा शोध है और बहुत आसान है। ५ वर्ष से लेकर बूढ़े लोग भी कर सकते हैं। केवल ५ मिनट का, लेकिन अद्भुत परिणाम वाला है। रोज नियम से लगातार करेंगे तो १ वर्ष बाद खुद को पहचान भी नहीं पाएंगे। इससे स्वयं पर नियंत्रण, निर्भीकता, मनोदशा, समझ, होशियारी, सचेतता आदि में आमूलचूल परिवर्तन आ जाता है। याददाश्त बहुत बढ़ जाती है, नजरिया बदल जाता है। इस प्रयोग के लिए सबसे अच्छा समय रात को सोने से पूर्व का है, अथवा कभी भी कर सकते हैं। पहले आलकी-पालकी लगा कर बैठ जाएँ। सामने दीवार अदि या टेबल पर १ बल्ब जला लें। उसकी रौशनी को अपलक देखते रहें। जब आँखों में थकान लगने लगे, आँखें बंद कर लें और वैसे ही बैठे रहें। बंद आँखों में अन्दर उस रौशनी को देखते रहें, जब तक वह अदृश्य नहीं हो जाती। जब यह अदृश्य हो जाए तो बिना आँख खोले वैसे ही लेट जाएँ। कुछ देर तक बस इतना ही करना है। रोज और निरंतर इस प्रयोग को किया तो चमत्कार देखने की आशा कर सकते हैं। रात में सोने से पहले यह प्रयोग कर रहे हैं, तो बस सुबह तक सोइए। जब उठेंगे तो अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक तरो-ताजा पाएंगे।
(प्रतीक्षा कीजिए अगले भाग की…)