प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी
सहारनपुर (उप्र)
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हरि केवल प्रहलाद को नाहीं, हरि केवल ध्रुवदास को नाहीं।
जो भी दृढ़ हो हरि-शरणागति उसके ही हैं नाथ सदाहीं॥
भक्त कोई संकल्प न करता हरि जो भी चाहे करवाएं,
न फल इच्छा न हो कामना हर कारज हरि जी निभवाएं।
हरि चरनन निष्ठा फल पाहीं, हरि चरनन निष्ठा फल पाहीं,
हरि केवल प्रहलाद को नाहीं, हरि केवल ध्रुवदास को नाहीं…॥
भक्त किसी की आस न राखें, बैर-क्लेश को काम नहीं है,
हरि का आश्रय लेकर उसको कोई भय को नाम नहीं है।
ध्यान धरे हरि को मन माहीं, ध्यान धरे हरि को मन माहीं,
हरि केवल प्रहलाद को नाहीं, हरि केवल ध्रुवदास को नाहीं…॥
ये संसार बड़ा है अद्भुत भगत, सन्त में अवगुण दिखते,
मन का जहर भर विष प्याले में धन के लोभ सदा ही बिकते।
माया-नेत्र हरि देखन चाहीं, माया-नेत्र हरि देखन चाहीं,
हरि केवल प्रहलाद को नाहीं, हरि केवल ध्रुवदास को नाहीं…॥
हरि तो हैं आचरण अधीना नाम जपन मन भगत दास हैं,
आदर हरि की हर रचना का रचनाकार रचना के पास है।
एक-दूजे सों प्रीत निबाहीं, एक-दूजे सों प्रीत निबाहीं,
हरि केवल प्रहलाद को नाहीं, हरि केवल ध्रुवदास को नाहीं…॥
भक्त नाम की ताकत पाके हरि जी को आशीष है देता,
दुनिया से तो क्या लेगा वो हरि से केवल भक्ति लेता।
रसना रट-रट नाहीं, अधाहीं रसना रट-रट नाहीं अधाहीं,
हरि केवल प्रहलाद को नाहीं, हरि केवल ध्रुवदास को नाहीं…॥
हरि केवल प्रहलाद को नाहीं, हरि केवल ध्रुवदास को नाहीं।
जो भी दृढ़ है हरि-शरणागति, उसके ही हैं नाथ सदाहीं…॥