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हरि बोल रसना रस घोल

प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी’
सहारनपुर (उप्र)
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हरि बोल हरि बोल हरि बोल रसना,
रस घोल रस घोल रस घोल रसना।

मोल क्या है सोने का, मोल क्या है चाँदी का,
प्रभु भक्ति का ही बस मोल रसना।

ऐसे वचन जो दुःखी का दिल दुखाएं,
मत बोल मत बोल मत बोल रसना।

अंतर पहचान अपने प्रभु परमात्मा,
तू खुद में ही ब्रह्म टटोल रसना।

इस जग की हर शैय बिके है तोल-मोल के,
भक्ति के तराजू हरि तोल रसना।

काया की हाय, कभी माया की हाय-हाय,
जग में फैला है कैसा झोल रसना।

प्रभु भक्ति पावन जल भर-भर ले हाथ में,
मन का ये बर्तन खखोल रसना।

संग बांधा सारा जग अपने ही स्वारथ में,
स्वारथ के फंदों को खोल रसना।

आत्मा की प्रीत परमात्मा ही जान सके,
जग में इसका दो कौड़ी मोल रसना।

हरि बोल हरि बोल हरि बोल रसना,
रस घोल रस घोल रस घोल रसना॥