हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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जीत का जश्न और हार का मातम, हर बार चुनाव में होता है
हर जीतने वाला हॅंसता है और, हर हारने वाला तो रोता है।
यूँ तो सत्ता समर में लड़ने वाला, हर नुमाइंदा योद्धा होता है
भीरू तो तब लगता है, जब वह सन्तुलन हार में खोता है।
जश्न में मदहोशी, हार में खामोशी, न अच्छी थी, न अच्छी है
ये दुनिया न सच्ची पहले थी और, आज भी तो न सच्ची है।
ये दुनिया खेल थी, खेल ही है, खेल समझ ही सब करना है
विचारों की लड़ाई विचारों से लड़े, आपस में क्यों लड़ना है ?
गाली-गलौज का प्रहार है कैसा ? भाषा की कोई मर्यादा है ?
विचारों का खण्डन वाजिब है, व्यक्तिगत होना तो ज्यादा है॥