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हर भाषा का सम्मान, लेकिन हिंदी हमारा स्वाभिमान

झाँसी(उप्र)।

हिन्दी साहित्य भारती ने हिन्दी भाषा के लिए सराहनीय प्रयास किया है। हिंदी ने दुनिया को जोड़ने का काम किया है। हर भाषा का सम्मान है लेकिन हिंदी हमारा स्वाभिमान है। वह दिन दूर नहीं, जब हिन्दी एक दिन गंगा की तरह विश्व में धारा बनकर बहेगी। हिंदी सीधा आत्मा को छूती है, दिल की गहराइयों में उतरती है। डॉ. रवीन्द्र शुक्ल ने जो अलख जगाई है, वह अब रुकने वाली नहीं है।
शौर्य और साहित्यकारों की भूमि, वीरांगना लक्ष्मीबाई की भूमि, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त सहित अनेक सुप्रसिद्ध साहित्यकारों की भूमि झांसी में हिंदी साहित्य भारती की राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक (होटल द मारवल्स) में भव्य दीक्षान्त समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रक्षा एवं पर्यटन राज्य मंत्री अजय भट्ट ने कही। विशिष्ट अतिथि के रूप में गुजरात साहित्य अकादमी के अध्यक्ष पं. विष्णु पंड्या, रानी लक्ष्मीबाई केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सुशील चतुर्वेदी, हिन्दी साहित्य भारती मॉरीशस के अध्यक्ष डॉ. हेमराज सुन्दर, छत्तीसगढ़ के पूर्व राज्यपाल डॉ. शेखर दत्त उपस्थित रहे। कार्यक्रम में हिन्दी साहित्य भारती के केन्द्रीय उपाध्यक्ष डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र, डॉ.नरेश मिश्र और डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय को साहित्यिक सेवाओं और उपलब्धियों के लिए सम्मानित किया गया। अध्यक्षता उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व शिक्षा मंत्री और हिन्दी साहित्य भारती के अन्तरराष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. शुक्ल ने की।
बैठक में सर्वसम्मति से भारत सरकार से यह मांग की गई कि संविधान में संशोधन करते हुए हिन्दी को राजभाषा के स्थान पर राष्ट्रभाषा बनाया जाए। संस्था के पदाधिकारियों ने यह प्रतिज्ञा ली कि वे हिन्दी भाषा को उसका दर्जा दिलाने के लिए पूरी ताकत से प्रयास करते रहेंगे। हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का संघर्ष निरंतर जारी रहेगा। इसके लिए राष्ट्रपति के लिए ५००० से भी ज्यादा लोगों ने पत्र हस्ताक्षर करके दिए जाने का संकल्प व्यक्त किया।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई)

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