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हाँ, मैं कर्ण…

सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
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क्षत्रिय कुल का अंश था,
तेजस्वी सूर्य का वंश था
संयोग से कोख में आ गया,
हाँ, मैं कुंती पुत्र कर्ण था।

कुल की लाज बचाने को,
पितृ का नाम छिपाने को
सूर्यपुत्र होकर भी कर्म-वश,
त्यागा माता ने प्रिय पुत्र को।

घुंघराले केशो के गुच्छ से,
आच्छादित नयन-नक्श से
कर देती बयां यह सच्चाई,
मैं था किसी क्षत्रिय-कुल से।

दुर्योधन ने मुझे मित्र बनाया,
सगे भाइयों से बैर कराया
जन्मा अभागा होकर धनुर्धर,
स्वयंवर में सूतपुत्र कहलाया।

मुझे नहीं मिला राजघराना था,
मैं क्यों किस्मत का मारा था
कुंती-सी माँ, सूर्य पिता पर,
मैं अपने कर्मों से हारा था।

भावनाओं से मैं सम्पन्न था,
भूत से पूर्णतः अनजान था,
जब मिली राजमाता कुंती मुझसे,
पीड़ा दिल की न कह पाया था।

खाली, उदास जीवन पाया,
परिवार से मैं क्यूँ बिछड़ गया
एक चिंगारी बन झुलस रहा,
मैंने शून्य-शून्य जीवन जीया।

मैं आभारहित सूर्यपुत्र हूँ,
माँ की ममता से वंचित हूँ
कर दान पितृ के कवच-कुंडल,
इतिहास का दानी कर्ण हूँ॥