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हाथ बढ़ा प्रभु मंगल कीजे

कुमकुम कुमारी ‘काव्याकृति’
मुंगेर (बिहार)
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है अति बेकल नैन हमारे।
दर्शन को प्रभु राम तुम्हारे॥
देकर दर्शन काज सँवारो।
नाथ हमें भव से अब तारो॥

थाल सजाकर मैं प्रभु आई।
पूजन पूर्ण करो रघुराई॥
हाथ बढ़ा प्रभु मंगल दीजै।
हे हरि पूर्ण मनोरथ कीजै॥

हूँ कब से प्रभु हाथ पसारे।
आप बिना प्रभु कौन हमारे॥
हे प्रभु देर नहीं अब कीजै।
दर्शन राम मुझे अब दीजै॥

हे रघुनंदन कष्ट निवारो।
दर्शन देकर प्राण सँवारो॥
है अति सुंदर रूप तुम्हारा।
मोह लिया जिसने जग सारा॥

राम लला प्रभु दर्शन दीजै।
हे रघुनाथ कृपा अब कीजै॥
देख मनोहर रूप तुम्हारे।
हर्षित हैं प्रभु नैन हमारे॥

देव हमें अब पार उतारो।
नाथ कृपा कर कष्ट निवारो॥
आप बिना प्रभु कौन हमारे।
हाथ पसार खड़े हम द्वारे॥