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हिंदी भाषा का विकास व संरक्षण सभी की जिम्मेदारी

मंजरी वी. महाजन
हमीरपुर (हिमाचल प्रदेश)
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भक्ति, संस्कृति, और समृद्धि की प्रतीक ‘हिन्दी’ (हिन्दी दिवस विशेष)…

महात्मा गांधी जी के अनुसार- ‘हिंदी का प्रश्न मेरे लिए देश की आजादी का प्रश्न है। हिंदी भाषा केवल एक राजभाषा नहीं है, यह संपूर्ण देश की संस्कृति के रूप में पल्ल्वित और पुष्पित भाषा है।’    
       जब भारत वर्ष आजादी की ऊर्जा का, नए संकल्पों का, आत्म निर्भरता का अमृत महोत्सव मना रहा है तो ऐसे में भारतीय संस्कृति की संप्रभुता, एकता एवं अखंडता को सुरक्षित रखने और लोकतांत्रिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने पर भी दृढ़ संकल्प लेकर विचार करना अनिवार्यता होनी चाहिए, विकल्प नहीं। यह दु:ख की बात है कि भारतीय लोग ही हिंदी बोलने में शर्म महसूस करते हैं। दक्षिण भारत तथा कई अन्य जगहों पर हिंदी का विरोध किया जाता है, जबकि अंग्रेजी को लोग शान से बोलते हैं। पूरे देश में अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय चल रहे हैं, जहां हिंदी में बात करना भी निषेध है। अगर कोई बच्चा गलती से भी हिंदी बोलता है तो उसे दंडित किया जाता है। माँ-बाप भी इस बात पर ज़ोर देते हैं कि उनके बच्चे अंग्रेजी को सीखें। हिंदी के विकास में कबीर दास, प्रेमचंद जी, सूरदास, तुलसीदास, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला तथा सुमित्रानंदन पंत का काफी योगदान रहा है। आज भी कई लेखक हिंदी के विकास में ईमानदारी से जुड़े हुए हैं, परंतु दु:ख यह है कि हम भारतीय ही हिंदी बोलने में शर्म महसूस करते हैं, जबकि अंग्रेजी बोलने में गर्व महसूस होता है। हिंदी राष्ट्र के गौरव का प्रतीक है। यह कोई क्षेत्रीय या साधारण भाषा नहीं है। यह एक विकसित और समृद्ध भाषा है। हिंदी का अपना व्यापक शब्द भंडार है। हिंदी व्यक्ति को एक नई पहचान देती है। हिंदी में सर्वव्यापकता, प्रचुर साहित्य रचना, बनावट की दृष्टि से सरलता, वैज्ञानिकता और सब प्रकार के भावों को प्रकट करने का सामर्थ्य है। पश्चिम के कई लोग भारतीय संस्कृति और भाषा को गर्व के साथ अपना रहे हैं, किंतु भारत में इसका अध्ययन घटता जा रहा है, जबकि अंग्रेजी सीखने व बोलने वालों की संख्या काफी अधिक है। हिंदी के विकास के लिए हमें अपने  व्यवहार में हिंदी को लाना होगा, तभी हमारी भाषा समृद्ध होगी और विकास होगा।
हम हिंदी को न केवल बोलें, बल्कि पढ़ें और लिखें भी। हिंदी का विकास और संरक्षण हम सभी की जिम्मेदारी है, ताकि यह भाषा आने वाली पीढ़ियों तक जीवित रह सके।

परिचय-मंजरी वी. महाजन का जन्म स्थान नादौन (जिला हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश) और जन्म तारीख ३० सितम्बर १९७४ है। वर्तमान में हमीरपुर में ही स्थाई निवास है। साहित्यिक नाम ‘मंजरी’ से आप जानी जाती हैं। भाषा ज्ञान देखें तो हिंदी भाषा में अत्यधिक रुचि होने के कारण इसके प्रचार-प्रसार में योगदान देना चाहती हैं। वैसे विज्ञान विषयों के अध्ययन के कारण इस भाषा में कोई विशेष उपाधि नहीं है। आपकी पूर्ण शिक्षा-एम.एस-सी. (वनस्पति विज्ञान) व एम.फिल. है। कार्यक्षेत्र में लगभग २३ वर्ष तक राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशालाओं में ११-१२ वीं के विद्यार्थियों को जीव विज्ञान पढ़ाने के उपरांत अब रा.व.मा.पा. भलेठ (हमीरपुर) में प्रधानाचार्या के पद पर कार्यरत हैं। सामाजिक गतिविधि के तहत आप पर्यावरणविद् होकर शाला और आसपास के क्षेत्रों में पर्यावरण संरक्षण हेतु कार्यरत हैं। मुम्बई स्थित सहारा अशासकीय संगठन के साथ वंचित विद्यार्थियों को ऑनलाइन पढ़ाने का काम भी कर रही हैं। विभिन्न प्रतियोगिताओं के लिए लेख लिखकर पुरस्कार जीत चुकी हैं, साथ ही कई समाचार-पत्र में भी लेखन जारी है। प्रकाशन की दृष्टि से विज्ञान विषयों से संबंधित आपके लेख ‘द ऑर्किड सोसायटी ऑफ़ इंडिया’ की पत्रिका में प्रकाशित हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य सच्चाई से ओत-प्रोत भावनाओं को लेखनी के माध्यम से व्यक्त करना और समाज कल्याण में कार्य करना है। पसंदीदा हिंदी लेखक-मुंशी प्रेमचंद हैं। मंजरी वी. महाजन के जीवन का लक्ष्य अधिक से अधिक ज्ञान अर्जित करना व मानव जाति के उत्थान के लिए कार्य करना है। इनके लिए इनके पिता जी ही प्रेरणापुंज, आदर्श और प्रेरणा स्रोत हैं। उनके अनुसार ज्ञानवर्धन के लिए पढ़ने और लिखने की कोई उम्र या समय निर्धारित नहीं होता। देश और हिंदी के प्रति विचार- “हिंदी मात्र अभिव्यक्ति या संचार का ही माध्यम नहीं, यह एक विचारधारा है। भारतीयों की सांस्कृतिक पहचान है। हमें इसके संरक्षण, संवर्धन और प्रोत्साहन में हर प्रयास करना चाहिए।”