🔵गुजराती-
◾स्वामी दयानंद सरस्वती-हिंदी द्वारा ही सारे भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है।
◾मोहनदास कर्मचंद गांधी- अंग्रेजी में स्वतंत्र भारत की गाड़ी चले, इससे बड़ा दुर्भाग्य भारत का और नहीं हो सकता। हिंदी अब सारे देश की भाषा हो गयी है। उस भाषा का अध्ययन करने और उसकी उन्नति करने में गर्व का अनुभव होना चाहिए। मैं अपनी बात अपनी भाषा में कहूंगा, जिसको गरज होगी, वह सुनेगा। आप इस प्रतिज्ञा के साथ काम करेंगे, तो हिंदी का दर्जा बढ़ेगा।
राष्ट्रभाषा की जगह एक हिंदी ही ले सकती है, कोई दूसरी भाषा नहीं।
◾सरदार वल्लभभाई पटेल-राष्ट्रभाषा हिंदी किसी व्यक्ति या प्रांत की सम्पत्ति नहीं है। उस पर सारे देश का अधिकार है।
◾भाई योगेन्द्र जीत-हिंदी में भारत की आत्मा है। हिंदी की वाणी में भारत बोलता है, भारतीय संस्कृति बोलती है।
◾कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी-हिंदी ही हमारे राष्ट्रीय एकीकरण का सबसे शक्तिशाली और प्रधान माध्यम है।
🔵तमिल
◾वेंकट रम्मैया-सबको हिंदी सीखनी चाहिए। इसके द्वारा भाव-विनिमय से सारे भारत को सुविधा होगी।
◾के. कामराज-मैं हिंदी में भाषण देना अपनी भाषा का गौरव बढ़ाना मानता हूँ।
◾अनंत शयनम अयंगार-अंग्रेजी के समर्थकों ने देश के राष्ट्रीय जीवन में एक अभेद्य दीवार खड़ी कर दी है और वे अन्य भाषाओं की चाहें वह तमिल, तेलुगु अथवा हिंदी, उसमें घुसने नहीं दे रहे।
◾विश्वनाथन् सत्यनारायण-हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने में प्रांतीय भाषाओं की हानि नहीं, लाभ है।
◾एन.ई. मुत्तूस्वामी-राष्ट्रीय एकता के लिए देश की सर्वमान्य भाषा के रूप में हिंदी का पठन अनिवार्य है।
◾सुब्रह्मण्यम भारती-
तमिलनाडु में हिंदी विरोध कुछ लोगों का फैशन है।
◾के.एन. सुब्रह्मण्यम-राष्ट्र की एकता को यदि बनाकर रखा जा सकता है, तो उसका माध्यम हिंदी हो सकती है।
◾डॉ. जी. रामचन्द्रन-भाषा के क्षेत्र में घृणा का नहीं, प्रेम और सौहार्द का सथान होना चाहिए।
◾श्रीमती कमला रत्नम-यह यथार्थता है कि हिंदी के अलावा और कोई भाषा भारत की सम्पर्क भाषा नहीं हो सकेगी। यह यथार्थता इस मिट्टी में समाई हुई है। इसमें संदेह नहीं कि यह यथार्थता अंकुरित होगी और एक बड़ा वृक्ष बनकर पल्लवित-पुष्पित होगा। यदि हिंदी को हमें जोड़ने वाली भाषा बनाना है, तो सरकारों को बहुत बड़ा दायित्व निभाना होगा। विविध भाषा-भाषी भारतीयों का आपसी सम्पर्क हिंदी के माध्यम से ही हो सकता है। हिंदी समझने वालों की संख्या बहुत अधिक है।
🔵मराठी
◾विनोबा भावे-मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। देवनागरी भारत के लिए वरदान है। यदि मैंने हिंदी का सहारा न लिया होता तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक और असम से केरल तक के गांव-गांव में भूदान का क्रांति संदेश जनता तक कदापि न पहुंच पाता। इसलिए मैं यह कहता हूं कि हिंदी भाषा का मुझ पर बड़ा उपकार है, इसने मेरी बहुत बड़ी सेवा की है।
◾डॉ. बी. आर. आम्बेडकर-हम सभी भारतवासियों का यह अनिवार्य कर्त्तव्य है कि हम हिंदी को अपनी भाषा के रूप में अपनाएं।
◾डॉ. जयंत विष्णु नार्लीकर (वैज्ञानिक)-थोड़े से अभ्यास से विज्ञान पर एक सीमा तक हिंदी में अच्छी तरह लिखा और बोला जा सकता है, क्योंकि जनता से सम्पर्क स्थापित करने के लिए जनभाषा का सहारा बहुत जरूरी है।
◾लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक-अगर भारत की सोई हुई वैज्ञानिक प्रतिभाओं को जगाना है, तो विज्ञान की शिक्षा का माध्यम हिंदी को बनाना होगा। इसके बिना भारतीय जनता और वैज्ञानिक विचारों के बीच विद्यमान दूरी को खत्म नहीं किया जा सकता और ऐसी दशा में जनता से सम्पर्क स्थापित करने के लिए जनभाषा का सहारा लेना बहुत जरूरी है।
◾मधु दण्डवते-राष्ट्र के एकीकरण के लिए सर्वमान्य भाषा से अधिक बलशाली कोई तत्व नहीं है। मेरे विचार में हिंदी ऐसी ही भाषा है। सरलता और शीघ्रता से सीखी जाने योग्य भाषाओं में हिंदी सर्वोपरि है।
◾काका कालेलकर-भाषा जनजीवन की चेतना का स्पदंन होती है। इसके लिए समुचित विचारों का भरपूर प्रचार आवश्यक है। हिंदी इसका एक उत्तम माध्यम सिद्ध हो सकती है।
◾विष्णु वामन शिरवाड़कर ‘कुसुमाग्रज’-हिंदी एक संगठित करने वाली शक्ति है। हिंदी का प्रचार कार्य एक वाग्यज्ञ है।
◾गोपाल राव एकबोटे-स्वभाषा और राष्ट्रभाषा द्वारा ही समाज में परिवर्तन और सामाजिक क्रांति संभव है।
◾डॉ. पाण्डुरंग राव-भाषा सक्षम होती जाती है उसे उपयोग में लाने से। संसार में एक भी उदाहरण ऐसा नहीं है, जहां भाषा को पहले सब कामों के लिए पूर्णत: तैयार कर लिया गया हो और उसके बाद उसका शासन कार्य में उपयोग किया गया हो।
◾डॉ. रंगराव दिवाकर-आजकल सरल हिंदी के संबंध में काफी चर्चा हो रही है और इस संबंध में जनसाधारण में और शिक्षित समाज में भी काफी मतभेद है। उत्तर में जिस भाषा को सरल या आसान समझा जाता है, वह दक्षिण में पढ़े-लिखे आदमी के लिए दुर्बोध बन जाती है। संस्कृत निष्ठ भाषा समझने में किसी को भी सुविधा होती है, तो किसी को उर्दू के रोजमर्रा की ताजगी में अधिक आनंद आता है। प्रत्येक व्यक्ति का अपना पर्यावरण होता है। भाषा भी पर्यावरण का एक अंग है। अपनी मातृभाषा के जिस पर्यावरण में एक व्यक्ति पलता है, उसी को लेकर वह दूसरी भाषा के क्षेत्र में भी प्रवेश करता है।
◾रमेश भावसार ‘ऋषि’-मैं राष्ट्र प्रेमी हूँ, इसलिए सब राष्ट्रीय चीजों का, सब राष्ट्रवासियों का प्रेमी हूँ तथा राष्ट्रभाषा का भी। राष्ट्रभाषा का प्रेम, राष्ट्र के अंतर्गत भिन्न-भिन्न लोगों का प्रेम और राष्ट्रभाषा का प्रेम, इसमें कुछ फर्क नहीं देखता हूँ। जो राष्ट्रप्रेमी हैं, उसे राष्ट्रभाषा प्रेमी होना ही चाहिए। नहीं तो कुछ हद तक राष्ट्रप्रेम अधूरा ही रहेगा।
🔵कन्नड़
◾वी. वी. गिरी (पूर्व राष्ट्रपति)–
हिंदी के बिना भारत की राष्ट्रीयता की बात करना व्यर्थ है।
◾के. हनुमंथैया-मैसूर, केरल तथा आंध्रप्रदेश ने हिंदी को संपर्क भाषा स्वीकार कर लिया है।
◾एस. निजलिंगप्पा-इसमें संदेह नहीं कि राष्ट्रीय एकता में हिंदी का महत्वपूर्ण स्थान है।
◾डॉ. सरगु कृष्णमूर्ति-भारत विभिन्न धर्मों एवं भाषाओं का अखाड़ा है। किसी भी समय यहां मजहब, भाषा या किसी अन्य भेद के कारण ज्वालाएं फूट सकती है। इन सबको यदि हम राष्ट्रीय भावात्मक एकता के सूत्र से बांधकर भारत रूपी माला में नहीं गूथेंगे तो ये धर्म, ये भाषाएं और ये लोग बिखर-बिखर जाएंगे। इन सबको हम आज किसी एक मजहब के नीचे नहीं ला सकते, किसी एक दल का नहीं बना सकते। इन सबको अस्सी करोड़ मणियों की माला के रूप में हम सम्पर्क भाषा हिंदी के सूत्र के द्वारा ही स्थापित कर सकते हैं, वरना तलुगुभाषी, कन्नड़ भाषियों से संपर्क स्थापित नहीं कर सकता। बंगाली-पंजाबियों से हटकर रहेगा यह राष्ट्र, राष्ट्र नहीं रह कर प्रांतों की एकता विहीन एक भूखण्ड मात्र रहेगा। राष्ट्र की आत्मा व्यथित, राष्ट्र मन दु:खित एवं राष्ट्र की एकता लुप्त प्राय: हो जाएगी।
◾प्रो. चन्द्रहासन-उत्तर और दक्षिण भारत का सेतु हिंदी ही हो सकती है।
🔵बांग्ला
◾सुभाषचन्द्र बोस-देश के सबसे बड़े भू-भाग में बोली जाने वाली हिंदी ही राष्ट्रभाषा की अधिकारिणी है। प्रांतीय ईर्ष्या, द्वेष दूर करने में जितनी सहायता हिंदी प्रचार से मिलेगी, उतनी किसी दूसरी चीज से नहीं।
◾रविन्द्रनाथ ठाकुर-आधुनिक भारत की संस्कृति एक विकसित शतदल कमल के समान है, जिसका एक-एक दल प्रांतीय भाषा और उसकी साहित्य-संस्कृति है। किसी एक को मिटा देने से उस कमल की शोभा ही नष्ट हो जाएगी। हम चाहते हैं कि भारत की सब प्रांतीय बोलियाँ जिनमें सुंदर साहित्य सृष्टि हुई है, अपने-अपने घर (प्रांत में) रानी बनकर रहे, प्रांत के जन-गण को हार्दिक चिंतन की प्रकाश भूमि-स्वरूप कविता की भाषा होकर रहे और आधुनिक भाषाओं के हार की मध्यमणि ‘हिंदी’ भारत-भारती होकर विराजती रहे।
◾क्षितिज मोहन सेन-हिंदी विश्व की सरलतम भाषाओं में से एक है। हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए अनेक अनुष्ठान हुए, उनको मैं राजसूर्य यज्ञ मानता हूँ।
◾महर्षि अरविंद घोष-भारत के विभिन्न प्रदेशों के बीच हिंदी प्रचार के द्वारा एकता स्थापित करने वाले लोग सच्चे भारत बंधु हैं। सब लोग अपनी-अपनी मातृभाषा की रक्षा करते हुए हिंदी को साधारण भाषा के रूप में पढ़ें।
◾-बंकिम चन्द्र उपाध्याय-हिंदी भाषा द्वारा भारत के अधिकांश स्थानों का मंगल साधन करें। अंग्रेजी के विषय में लोगों की जो कुछ भी भावना हो, पर मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि हिंदी के बिना हमारा कार्य नहीं चल सकता। हिंदी की पुस्तकें लिखकर और हिंदी बोलकर भारत के अधिकांश भाग को निश्चय ही लाभ हो सकता है। यहि हम देश में बंगला और अंग्रेजी जानने वालों की संख्या का पता चलाएं, तो हमें साफ प्रकट हो जाएगा कि वह कितनी न्यून है ? जो सज्जन हिंदी भाषा द्वारा भारत में एकता पैदा करना चाहते हैं, वे निश्चय ही भारत बंधु हैं।
◾विमल मित्र-हिंदी समस्त देश को एक सूत्र में बांधने वाली भाषा है, इसलिए इसको राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित होना उचित है।
◾डॉ. सुनीतिकुमार चटर्जी-मैं हिंदी प्रेमी हूँ, सांस्कृतिक जीवन में हिंदी के महत्व को भली-भांति समझता हूँ। भारतीय एकता का मुख्य साधन हिंदी ही बन चुकी है। इसलिए हिंदी का विरोध करना भारती राष्ट्र का विरोध करना है।
◾न्यायमूर्ति शारदाचरण मित्र- अब भारत में एक लिपि के व्यवहार एवं उसके आसेतु हिमालय प्रसार का समय आ गया है और वह लिपि देवनागरी के अतिरिक्त दूसरी कोई नहीं हो सकती।
🔵तेलुगु
◾पी.वी. नरसिंहराव-हिंदी को हम सब एक भाषा के रूप में नहीं, अपितु एक सेतु के रूप में देखते हैं।
◾डॉ. मोटूरी सत्यनारायण-किसी प्रांत विशेष की भाषा होने से हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं मान ली गयी, बल्कि इसलिए मानी गई है कि वह अपनी सरलता, काव्य मयता और क्षमता के कारण सारे देश की भाषा हो सकती है। हिंदी के विकास में २ क्षेत्रों से मदद प्राप्त होना अनिवार्य है-हिंदी क्षेत्र तथा अहिंदी क्षेत्र।
◾नीलम संजीव रेड्डी-जो हिंदी अपनाएगा, वही आगे चलकर अखिल भारतीय सेवा में जा सकेगा और देश का नेतृत्व भी वही कर सकेगा, जो हिंदी जानता होगा।
◾डॉ. वी.के.आर.वी. राव-यदि सभी भारतीय भाषाओं के लिए नागरी लिपि का उपयोग हो, तो देश की विभिन्न भाषाएं सीखने में आसानी हो।
◾डॉ. वी.राघवन-अखिल भारतीय कार्यों के लिए एक समान लिपि के रूप में देवनागरी का ही समर्थन किया जा सकता है।
◾डॉ. बी. गोपाल रेड्डी-क्षेत्रीय भाषाओं को अपनाने के जोश में संपर्क भाषा हिंदी के विकास की उपेक्षा नहीं की जाना चाहिए।
◾विश्वनाथ सत्यनारायण-राष्ट्रीय एकता के लिए देश की सर्वमान्य भाषा के रूप में हिंदी का पठन अनिवार्य है।
🔵उड़िया
◾कालीचरण पाणिग्रही-मैं शुद्ध अंग्रेजी बोलने के बजाय अशुद्ध हिंदी बोलना पसंद करता हूँ, क्योंकि वह मेरी राष्ट्रभाषा है।
◾सरोजिनी नायडू-अगर हम साधारण बुद्धि से काम लें, तब हमें पता चलेगा कि हमारी कौमी जबान हिंदी हो सकती है।
◾डॉ. भुवनेश्वर तिवारी-आओ भारत-भारती की हम उतारें आरती,
पूज्य है पूज बनें हम, मातृ-भूमि की भारती।
संस्कृति संवाहिका श्री श्रेष्ठ भारत-भारती,
अर्चना है, वंदना है, जय-जय भारत-भारती।
चेतना में, चिंता में, कर्मणा में भारती,
व्याप्त सारे देश में, उदात्त भारत-भारती।
विपुल भावों से भरा, यह लो समर्पण भारती,
विश्व आसन पर विराजो, दिव्य भारत-भारती।
🔵मलयालम
◾कामरेड इ.एम.एस. नम्बुदरीपाद-विदेशों से सम्पर्क के लिए हिंदी माध्यम हो। अंग्रेजी के कारण विदेशों में हमें लज्जित होना पड़ता है।
◾बी.के.बालकृष्णन-हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा और नागरी हमारी राष्ट्र लिपि है।
◾महाकवि कुरुप-भारत की अखण्डता और व्यक्तित्व बनाए रखने के लिए हिंदी प्रचार अत्यंत आवश्यक है।
🔵पंजाबी
◾लाला लाजपतराय-आरंभिक जीवन से ही मुझे यह निश्चय हो गया था कि राष्ट्रीय मेल और राजनीतिक एकता के लिए सारे देश में हिंदी और नागरी का प्रचार आवश्यक है। तब मैंने अपने लाभ-हानि के विचारों को एक ओर रख कर हिंदी का प्रचार प्रारंभ किया।
◾डॉ. राजाराम महरोत्रा-राष्ट्रभाषा को अपने ही घर में दासी मत बनाइए।
◾ज्ञानी जैल सिंह-लोकमान्य तिलक और महात्मा गांधी जैसे महानुभाव हिंदी भाषी प्रांतों में पैदा नहीं हुए थे, पर उन सबने आजादी की लड़ाई हिंदी द्वारा ही लड़ी थी। यह हिंदी इतनी प्रचलित है कि प्रांतीय भाषाओं के शब्दों को भी हजम करती है। भारत के निवासियों को यह समझ लेना चाहिए कि हिंदी के बिना हमारी आजादी अधूरी है, हिंदी भाषा न तो पंजाबी को मारना चाहती है, न गुजराती को, न मराठी, न तमिल, तेलुगु और बंगला को ही, यह तो सबको जिंदा रखने के लिए तैयार है। इसी भाषा से हम आगे बढ़े हैं और यही भाषा हमको आगे बढ़ा सकती है।
(संग्राहक-निर्मलकुमार पाटोदी, इंदौर (मप्र), सौजन्य:वैश्विक हिन्दी सम्मेलन, मुम्बई)