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हिन्दी-काव्य-नभ के प्रखर भास्कर थे महाप्राण निराला

जयंती..

पटना (बिहार)।

निराला ही व्यक्तित्व था महाप्राण ‘निराला’ का। हिन्दी काव्य नभ के सर्वाधिक प्रखर भास्कर थे वे। छायावादकाल के ४ प्रमुख-स्तम्भों में उनका व्यक्तित्व श्रेष्ठ और विराट था। वे जीवन के समान कविता में भी नूतनता के पक्षधर थे। इसीलिए वे वाणी से प्रार्थना भी करते हैं, तो कहते हैं-“नव गति, नव लय, ताल छंद नव, नवल कंठ, नव जलद मंद्ररव, नव नभ के नव विहग-वृंद को नव पर नव स्वर दे! वीणा वादिनी वर दे!”
यह बात बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में महाप्राण पं. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की जयंती पर आयोजित समारोह और वसंतोत्सव-कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने कही। वरिष्ठ साहित्यकार दिलीप कुमार, वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, आनन्द किशोर मिश्र, अवध किशोर सिंह तथा प्रो. सुशील कुमार ने भी विचार व्यक्त किए।
सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। गीत के सुचर्चित कवि जय प्रकाश पुजारी ने वसंत का स्वागत करते हुए कहा-“स्वागत है ऋतुराज तुम्हारा स्वागत है ऋतुराज” तो कवयित्री मधु रानी लाल ने इन पंक्तियों से मदनदेव को आमंत्रित किया कि, “ऋतु वसंत मदमा रही, मदन जगे हिय कोर”। डॉ. सुधा सिन्हा, प्रो. सुनील कुमार उपाध्याय, मधुरानी लाल, डॉ. पंकज वासिनी और पंकज प्रियम आदि कवि- कवयित्रियों ने भी अपनी रचनाओं और ऋंगार के पुष्प से ‘मदन’ का अभिषेक किया। मनोज कुमार सिन्हा, वरिष्ठ कवि सिद्धेश्वर जी, अनिता कुमारी व अमन वर्मा आदि उपस्थित रहे।
संचालन कवि ब्रह्मानन्द ने किया। धन्यवाद ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने दिया।