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हे! जल-दूत कह दो जा के…

सौ. निशा बुधे झा ‘निशामन’
जयपुर (राजस्थान)
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आतंक, विनाश और ज़िंदगी (पहलगाम हमला विशेष)…

भारत का इतिहास रहा,
झेलम (जल) से न कोई वंचित रहा
खून की होली खेली उसने फिर आज,
जल को किया हमने बन्द आज
लहर उठी नफरत की फिर आज,
बच्चों के मन में भी ठेस लगी गहरी आज।

वो दौर लौट आया! फिर,
आँधी-तूफान की तरह
भारत छोड़ो आंदोलन की,
गूँज उठी फिर एक बार
१९४७ की वो कहानी फिर चली,
रेलम-रेल चली।

देखा नहीं था इस पीड़ा को,
हम नवयुवकों ने
आज देख लिया कैसे भयंकर,
रहा होगा मंजर वो भी
देस छोड़ कर जाने को दोनों सरहद रही,
बेताब नहीं कोई।

दुखद समय है ये भी,
रिश्तों से रिश्ता छूटा
आतंकियों ने गदर मचाया ऐसा,
अंग्रेजों के जमाने में लड़ रहे थे हम आजादी को
आज भी लड़ रहे आतंकवाद के खिलाफ हम भी,
अब ये जंग का अंत हो।

तुम अपने घर में,
हम अपने घर हों
लड़ाई नहीं है, ये जंग है,
जंग को मिटा दो आज।
फिर न हो कभी,
इस तरह की कोई बात॥