धर्मेन्द्र शर्मा उपाध्याय
सिरमौर (हिमाचल प्रदेश)
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शिक्षक दिवस विशेष…
हे शिक्षक!
शिक्षक ही नहीं;शिल्पकार हो तुम
ओझल हो रहे सपनों में,
समाज का दर्पण हो तुम
मानव जाति सभ्यता के,
सुसंस्कृत, संस्कार हो तुम।
समस्त प्राणियों के जीवन,
प्रकाश रूप हो तुम
फैला ज्ञान का तुमसे ये चमन,
हे शिक्षक तुम्हें नमन…।
श्रीराम, भरत, महावीर,
नानक के ज्ञानाधार हो तुम
विवेक, बुद्ध, सुभाष, भगत,
लक्ष्मी के जीवन सार हो तुम।
देशप्रेमियों के उद्घोषों के,
प्राणाधार हो तुम
मानव जाति की मानवता के,
मूलाधार हो तुम
लहरा रहा तुमसे वतन,
हे शिक्षक तुम्हें नमन…।
शिक्षा पर हो रहे नित नए,
प्रयोगों को स्वीकार किया है
सरकार के नए-नए,
फरमानों का भी स्वागत किया है
नेताओं के शोषण व जनता की,
ठोकरों को आत्मसात किया है
कर्मठ, सहनशक्ति की,
प्रतिमूर्ति बने हो तुम
आत्मविश्वास स्वाभिमान से भरे,
हे शिक्षक तुम्हें नमन…।
समय बहुत विकट है उस पर,
शिक्षा का व्यापारीकरण
शिक्षक की शिक्षा विफल हो रही,
व्याकुलता भरी जन-मन
मौन शिक्षक मांग रहा,
अधिकार रहित कर्तव्य सम्मान
देख विपरीत परिस्थितियों को,
संघर्षशील बने हो तुम।
आत्मग्लानि छोड़ विकट,
परिस्थितियों में देते ज्ञान
हे शिक्षक तुम्हें नमन…॥