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हे सावन, अब नहीं जाना

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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मेघ, सावन और ईश्वर…

आ गया है धरा में, दिन ईश्वर का पावन,
धरती माता से मिलने, आ गया है सावन।

आ गया सावन, मेघ को साथ में लाए हैं,
उमड़-घुमड़ कर मेघ, जल को बरसाए हैं।

देवलोक से ईश्वर, सावन को देख हर्षाए,
सावन के जल से, शिव जी खूब नहाए।

धरती में रिमझिम आई, मेघों की फुहार,
चहकती बरसात से, भीग गए हैं घर-द्वार।

चले हैं काँवरिया, भोले बाबा से मिलने,
जल पिलाकर भोले को, आशीष माँगने।

हे मेघा जरा रुक, जाना है बैजनाथ धाम,
जा रहा हूँ शिव नगर, ले के शिव का नाम।

सजनी से मिलने, आए साजन सावन में,
मेघों की फुहार से, भीग रहे हैं आँगन में।

हे सावन आ गए हो, तो अब नहीं जाना,
‘देवन्ती’ के पिया, हैं परदेस में बुला लाना।

देख सावन का जल, ईश्वर लुभा गए हैं,
मेघा, सावन और ईश्वर, धरा में आ गए हैं॥

परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है |