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है पीड़ा

अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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‘किन्नर’
होना मजबूरी
है शारीरिक पीड़ा,
हाथ थामें
मदद।

यह,
अलग नहीं
हिस्सा मानवता का,
साथ निभाएँ
प्रेम।

बाँटें,
इनका दर्द
वक़्त सबका आएगा,
ईश्वर देखता
कर्म।

‘हिजड़ा’
अपमान क्यों ?
देश-जीवन इनका
‘तृतीय लिंगी’
निर्दोष।

‘खोजवा’
हँसी उड़ाते
अक्सर नर-नारी,
सामाजिक बनाएँ
समाज॥