डॉ. मुकेश ‘असीमित’
गंगापुर सिटी (राजस्थान)
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नव प्रभात की किरण सलोनी,
लाया नव अनुराग है
सप्तस्वरों में गूँज रहा अब,
जीवन का नव राग है।
प्राची की अरुणिमा बोल उठी,-
“नव पल्लव तरुवर पर साजे”
हर्ष-वृष्टि सी मन में छाई,
उर में नव संस्कार विराजे।
वीर्यवंत हों संकल्प हमारे,
ध्येय-पथ पर दृढ़ गमन हो
सत्य-धर्म की पुनः प्रतिष्ठा,
सह जीवन का नव सृजन हो।
आशाओं की नव अँगड़ाई,
रक्त लालिमा में बस जाए
विचारों की स्वर्णिम बेला,
कर आलिंगन सब रस भाए।
उत्सव बनें परिश्रम-क्षण सब,
श्रद्धा बनें हर भाव हमारे
भूलें द्वेष-प्रतिशोध की ज्वाला,
भर जाएँ सब घाव हमारे।
दिग्दर्शिका बनें परम्परा,
सद-संगति का संग सदा हो
संघटनों में जगे शक्ति फिर,
ऋषि-चिंतन सा रंग सदा हो।
यह नववर्ष न हो पुराना,
हो नव संकल्पित शपथ सदा ही।
एकत्व का व्रत लेकर भारत,
रचें नव धर्म-पथ सदा ही॥