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क़ुदरत के करिश्मे

तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान) 
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बिन आधार,
खड़ी है धरती
बिन खम्बे आकाश,
समझा कोई न आज तक
पंडित-ज्ञानी-ध्यानी,
क़ुदरत के करिश्मे पर
कैसे न हो हैरानी ?

फूलों पर मंडराती फिरती
रंग-बिरंगी तितली,
बादल छाए आसमान में
और चमकती बिजली,
कहाँ से बरसा है पानी ?
क़ुदरत के करिश्मे पर,
कैसे न हो हैरानी…?

कैसे चमकते आसमान पर
सूरज-चाँद-सितारे,
आपस में वो कभी न लड़ते
मिल-जुल रहते सारे,
लगती है एक कहानी।
क़ुदरत के करिश्मे पर,
कैसे न हो हैरानी…?

रंग भरे फूलों में किसने
ख़ुशबू कैसे समाई,
आसमान में किसने ये
तारों की बारात सजाई,
मौजों के संग रवानी।
क़ुदरत के करिश्मे पर,
कैसे न हो हैरानी…?

सृष्टि की रचना करके
छुप गया वो अवतारी,
पुरुष बना दिया किसी को
किसी को बनाया नारी,
बचपन,बुढ़ापा और जवानी।
क़ुदरत के करिश्मे पर,
कैसे न हो हैरानी…?

जीव जगत में आया कैसे
और कहाँ उसे जाना,
खाली हाथ वो आया था
और खाली हाथ ही जाना,
बचेगी न कोई निशानी।
क़ुदरत के करिश्मे पर,
कैसे न हो हैरानी…?

पहले वृक्ष बना या बीज
कोई समझ न पाया,
ईश्वर की सब लीला है ये
गुरु ने ये समझाया,
मानुस जन्म है फ़ानी।
क़ुदरत के करिश्मे पर,
कैसे न हो हैरानी…?

परिचय– श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।