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लघुकथाकार डॉ. सतीशराज पुष्करणा नहीं रहे

दिल्ली।

हिन्दी लघुकथा साहित्याकाश के दैदीप्यमान सूर्य और पितामह डॉ. सतीश राज पुष्करणा (महेन्द्रु पटना) नहीं रहे। लघुकथा जब संघर्ष के दौर में थी तो,डॉ. सतीशराज ने लेखन का बीड़ा अपने कंधों पर उठाया। व्यवसाय से प्रकाशक और अन्तःकरण से महान लघुकथाकार और लघु कथा विधा के पितामह डॉ. पुष्करणा का पंचतत्त्व में विलीन होना वास्तव में हिन्दी साहित्य जगत की कभी न भरनेवाली अपूरणीय क्षति है।
दिल्लीवासी साहित्यकार एवं शिक्षक डॉ. रामकुमार झा ‘निकुंज’ ने यह भावना बड़े भाई और महान् साहित्यिक मित्रश्रेष्ठ डॉ. पुष्करणा(जन्म- १९४६,मृत्यु-२८जून २०२१) के निधन पर व्यक्त की है। आपके अनुसार डॉ. सतीश राज हमारे बड़े भाई, परम मित्र और करीब ३७ वर्षों से हमारे पारिवारिक ,साहित्यिक और सांस्कृतिक मित्र थे। हम ५० से अधिक मंचों पर साहित्यिक गोष्ठियों,सभाओं व सम्मेलनों में साथ रहे। हमने मिलकर सन् १९८९ ई. में भारतीय साहित्य,संस्कृति और कला को समर्पित साहित्यिक संस्था ‘अन्तर्नाद’ की स्थापना की, जिसका महासचिव उन्होंने मुझे बनाया,एवं उसके प्रथम और द्वितीय वार्षिक साहित्यिक समारोह का संचालन डॉ. पुष्करणा ने ही किया। उस मंच पर आचार्य जानकी वल्लव शास्त्री मुख्य अतिथि थे। आज मैं वस्तुतः अपने वरिष्ठ सहयोगी मित्र को ही नहीं खोया हूँ,अपितु छात्रजीवन से आज तक का परम शुभेच्छु,बड़े भाई,अभिभावक और महान लघुकथाकार को ख़ो दिया है। उन्हें शत्-शत् नमन के सह कृतज्ञ साश्रु श्रद्धांजलि देता हूँ।

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