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एक छोटा-सा गाँव

वाणी वर्मा कर्ण
मोरंग(बिराट नगर)
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एक छोटा-सा गाँव,
सीधे-सादे लोग
शीतल हवा पीपल की छाँव,
खेतों में उपजते धान और धान से उपजती खुशियाँ
मन में संतोष और मेहनत से खिलता गाँव,
ना छल-कपट ना दुष्टता
प्रेम की भाषा और लोगों का जुड़ाव,
वसुधैव कुटुम्बकम्-सी
लोगों की मिलनसारिता और कोमल भाव,
सबके सुख-दुःख में होते शामिल
संयुक्त परिवार और परिवारों से परिपूर्ण होता गाँव।

बदला गाँव बने शहर,
बढ़ी व्यस्तता और लोग हुए दूर
अपनी इच्छा अपना घर,
बदली लोगों की सोच और टूटा परिवार
ना कुएं का ठंडा पानी,ना पीपल का आसरा,
चारों ओर धूल-मिटटी और इनमें दौड़ते हम पहर से पहर
खोते चैन-खोखले रिश्ते और भीड़ में अकेले होने का डर।

एक बार तो पीछे मुड़कर देखें हम,
क्या थे क्या बन गए
कहाँ छोड़ा हमने अपना चैन,
कहाँ खोया अपना मन।
अब तो बस याद है वो पीपल की छाँव,
एक छोटा-सा गाँव…॥

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