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प्रकृति

पूनम दुबे
सरगुजा(छत्तीसगढ़) 
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चलते-चलते,

दूर निकल गई

इन वादियों में,

खो गई…

कितनी खूबसूरत

है ये ज़मीं,ये आसमां,

ये सारी प्रकृति…l

 

जाऊंगी कहां,

पता नहीं

आसमां झुक रहा है,

शायद वहां तक

मन में सवाल है,

हजारों ख्याल है

ये प्रकृति…l

 

रंग-बिरंगे फूल,

हरी-भरी वादियां

लम्बे ऊंचे पेड़,

बतियाती ये डालियां

ये प्रकृति…l

 

थकती नहीं इन,

नजारों को देख मेरी

नजरें जैसे कोई सपना,

कैसे छेड़ते हैं दर्द नहीं

कैसे काटते हैं पेड़ों को,

ये प्रकृति…l

 

नीले आसमान,

के नीचे ये हरियाली

ओढ़े वसुंधरा,

कल-कल करती

नदियां भौंरों की,

मधुशाला

ये प्रकृति…l

 

मत छेड़ो तुम इनको,

हँसने-गाने दो

इनकी सुंदरता,

अपनी आँखों में

उतरने दो,

ये प्रकृति…l

 

जियो और इन्हें भी,

जीने दो है हमारी ही

जरूरत,

साँसों को महकाने दो

कुदरत की बगिया को,

बस यूँ ही सँवरने दो

ये प्रकृति…l

 

मत छेड़ो-मत काटो,

लहराने दो,हँसने दो

नतमस्तक हूँ,

देख तुझे मैं,सबने तुझसे

रंग लिए-तुझसे सब छीना है,

मैं भी तेरी गोद में हूँ

अपनी शरण में रखना,

ये प्रकृति…l

सुन्दर प्रकृति…ll

परिचय-श्रीमती पूनम दुबे का बसेरा अम्बिकापुर,सरगुजा(छत्तीसगढ़)में है। गहमर जिला गाजीपुर(उत्तरप्रदेश)में ३० जनवरी को जन्मीं और मूल निवास-अम्बिकापुर में हीं है। आपकी शिक्षा-स्नातकोत्तर और संगीत विशारद है। साहित्य में उपलब्धियाँ देखें तो-हिन्दी सागर सम्मान (सम्मान पत्र),श्रेष्ठ बुलबुल सम्मान,महामना नवोदित साहित्य सृजन रचनाकार सम्मान( सरगुजा),काव्य मित्र सम्मान (अम्बिकापुर ) प्रमुख है। इसके अतिरिक्त सम्मेलन-संगोष्ठी आदि में सक्रिय सहभागिता के लिए कई सम्मान-पत्र मिले हैं।