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दिवाली क्या गई,जीना हराम कर गई

संदीप सृजन
उज्जैन (मध्यप्रदेश) 
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दिवाली वैसे तो खुशी का त्योहार है,हर कोई चाहता है कि, उसके जीवन में दिवाली आए,पर कुछ लोगों को लगता है कि भगवान करे इस बार दिवाली नहीं आए,क्योंकि दिवाली आने के पहले ही उनको तनाव शुरू हो जाता है,और दिवाली के बाद तो उनका जीना हराम हो जाता है। उनने उधार किराना,राशन देने वाले को,दूध वाले को,काम वाले को,यहाँ तक कि,अपनी पत्नी को,बच्चों को और हर किसी को बस यही कहा है कि,दिवाली बाद करेंगे। बेचारे दिवाली बाद के कामों की सूची बनाने लगे तो होली आ जाए,पर सूची पूरी नहीं हो।

दिवाली के बाद क्या-क्या करना है,करने वाले कामों की श्रंखला इतनी लंबी है कि,चार जन्म इस धरा पर वो ले,तो भी पूरी नहीं होगी। दिवाली नहीं हुई,तब तक तो एक आड़ थी कि,दिवाली हो जाने दो फिर करते हैं। न जाने कितने वायदे दिवाली की आड़ में धक रहे थे,जिनको पूरा करने का समय भगवान करे कभी न आए,पर अब तो ये दिवाली भी गईl मतलब अब बहाना बनाने के लिए होली से पहले कोई त्योहार नहीं,और कुछ बहाने ऐसे होते हैं,जो केवल दिवाली से जुड़े होते हैं,उनको होली के लिए टाल नहीं सकते।

सालभर राशन किराना उधार देने वाला या वक्त जरुरत नगद मदद करने वाला दिवाली के बाद कुछ दिन और ज्यादा से ज्यादा देव दिवाली तक मन मार कर नहीं मांगेगा,पर फिर तो मांगेगा ही और कोई बहाना भी उनके पास नहीं होगा। या तो करार हो गया,चुकारा करो या मुँह छुपाओ और कोई इलाज नहीं,क्योंकि देने वाला जानता है कि दिवाली पर नहीं मिला तो अगली दिवाली तक इंतजार करना पड़ेगा। और इंतजार का एक पल भी दिनों के समान होता है,वे और हम सब जानते हैं।

उनकी सेहत की एक मात्र शुभचिंतक याने उनकी धर्मपत्नी का सुबह घूमने जाने के लिए किया जाने वाला तगादा,जो उनके फेसबुक और व्हॉटसएप चलाते हुए दिनभर सोफे पर पड़े रहने के कारण बढ़ी तोंद को कम करने के लिए होता है,शुरु हो गया। शायद उनकी तोंद कम करने से ज्यादा घर के सुबह के काम शांति पूर्वक कर सके,इसका आग्रह भी होता है सुबह घूमने के कठोर आग्रह में। ये काम बिना किसी ना-नुकुर के दिवाली बाद शुरु हो गया,क्योंकि दिवाली के पहले से ही रेड अलर्ट इस मामले में जारी कर दिया गया था,और भाई दूज के एक दिन पहले से ही अपने पीहर वालों के सामने उनको बेइज्जत नहीं करने और उनके सम्मान के इरादे से सचेत कर दिया गया था,तथा धमकी के साथ सुबह ५ बजे का अलार्म लगा दिया जा रहा है। वे भी घरवाली की मनुहार और अपनी तोंद के सामने नतमस्तक होकर मन मार कर घूमने का संकल्प ले कर घर से निकल जाते हैं। कुछ घूमना,कुछ घुमाना हो जाता है सुबह-सुबह,पर नहीं मिलता है तन-मन को चैन कारण दिनभर याद आते हैं,दिवाली बाद के इकरार और और उनके पूरे करने के लिए क्या जुगाड़ करना है। कई बार लगता है-दिवाली क्या गई,जीना हराम कर गई।

 

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