संजय गुप्ता ‘देवेश’
उदयपुर(राजस्थान)
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चर्चे बहुत हुए राहों पर चले,नंगे पाँवों के निशान के
पर जुदा नहीं दिखे थे,किसी हिंदू या मुसलमान के,
मेहनतकश इन्सान थे,किसी धर्म में नहीं बंटे थे वो-
जिए साथ तो मरेंगें भी साथ,चले थे दिल में ठान के।
कुदरत हो या सृष्टि हो,उसके सारे बच्चे होते समान
हिंदू सोया मस्जिद में,मुसलमां मंदिर में चादर तान के,
हर मुश्किल में ये रहे थे साथ और रहेंगे भी सदा साथ-
मुसलमान ने गुनगुनाए भजन,हिंदू सुने शब्द अजान के।
ऐ वतन के धरमनिरपेक्ष लोगों तुम्हें कायम रखनी होगी
सब धर्मों की सहिष्णुता,तन-मन-धन और प्राण से,
एक-दूजे की मदद को,अपनी हर संभव कोशिश करना-
एक पुकारेगा जमीं के अंदर,दूसरा बुलाएगा आसमां से।
बहुत मिलेंगे तुमको लोग,भड़काएंगे नफरत के खातिर
पर इनके छलावे में ना आना,करना अनसुना कान से।
देश अस्थिर ना होने पाए,मंसूबे ना पनप पाएंगे उनके-
अगर सभी सुनें अपनी आत्मा-औ-रूह को ध्यान से॥
परिचय-संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।