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सूना-सूना रात का आँचल

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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सूना-सूना रात का आँचल
निखरी यादों के बिखरे पल,
प्रीति के सागर में बह जा
मेरी आँखों के गंगाजल।

उदास चेहरा लिए खड़ा है
नीरव-सा ये सघन अंधेरा,
क्या अंजलि में बांध लिया है
तूने ये दारुण दु:ख मेरा ?
नयनों के सपने न मचल,
सूना-सूना रात का आँचल।

मैं अंधियारे सूरज की ज्योति
मिली न मंजिल रूह भटकती,
मूक मेरे जीवन की पीड़ा
साँस मेरी रुक रही है लगती,
हाय! कब बीत जाए ये पल…
सूना-सूना रात का आँचल।

सारी रात कटी आँखों में
न आना था न तुम आए,
दीप देव का लेकर सारी रात
जले हम,तुम मुस्कराए,
आ जाओ अब करो न छल..
सूना-सूना रात का आँचल।

बिना पुकारे पाँव आप ही
तेरी ओर बढ़े अनजाने,
सब-कुछ खोया-खोया लगता
तुम केवल लगते पहचाने,
अब ना जाना कहीं बदल…
सूना-सूना रात का आँचल।

आंधी में भी दीप जला है
जो तूने जलाया है रे मन!
पाषाणों से प्रीत मिली है,
क्यों करता है रे बचपन ?
भोला है नादान संभल,
सूना-सूना रात का आँचल॥

परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।