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तजें दुष्ट आचार

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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सद्विचार समरस सुखी,मानवता से प्रीति।
जले शान्ति की दीप जग,चले धर्म और नीति॥

जीवन हो सुखसार जग,उन्नति हो जन आम।
शिक्षा हो सब जन सुलभ,परहित भाव मुकाम॥

खिले चमन संसार का,महकें सौरभ फूल।
हरित भरित सुष्मित प्रकृति,हो मौसम अनुकूल॥

सोच सदा अनुकूल हो,चिन्तन नव सत्काम।
समरसता मुस्कान भर,बने मीत जग आम

विश्व शान्ति सम्भव तभी,जब त्यागे सब स्वार्थ।
सहयोगी जन मन प्रकृति,जीवन हो परमार्थ॥

लिप्सा हिंसक छल कपट,तजे भाव विस्तार।
क्रोध घृणा मिथ्या अहं,तजें दुष्ट आचार॥

पशु विहग निर्भीत हो,हो स्नेहिल व्यवहार।
परहित रत खगवृन्द पशु,रक्षक नित संसार॥

वन पादप रक्षा कवच,हैं जीवन आधार।
विविध पौध दें औषधि,मूल फूल फलदार॥

उपकारक पर्वत सरित,झील जलज प्रपात।
जीवन दे मधुरिम सलिल,सप्त सिन्धु जलधार॥

रहें सहज मृदु भाव मन,प्रवहित प्रीत बहार।
सुख वैभव ख़ुशियाँ मिले,जो जग में लाचार॥

अहंकार सत्ता फलक,तजे दमन लघु देश।
मददगार बन प्रगति में,अमन चैन उपवेश॥

अस्त्र-शस्त्र ब्रह्मास्त्र से,रोकें युद्ध विनाश।
विस्तारक दुर्नीति तज,जगा शान्ति जग आश॥
चारु सृष्टि रक्षण करें,बाँट प्रीत उपहार।
शान्ति कान्ति से भ्रान्ति तम,सभी मिटे संसार॥

नशामुक्त हो विश्व अब,बदले मन उन्माद।
हिंसा धोखा क्रूरता,मिल करतीं बर्बाद॥

ईश्वर की रचना धरा,करो प्यार आबाद।
फैल शान्ति की अरुणिमा,खग पशु नर आज़ाद॥

सद्भावन इन्सानियत,करें नेक सत्काम।
यायावर ईमान पथ,शान्ति रथी चल धाम॥

कवि निकुंज विरुदावली,करता जग आह्वान।
तज राग द्वेष धन लोभ को,प्रेम शान्ति कर दान॥

नारी हो सम्मान जग,सबल ज्ञान निर्भीत।
जननी जग आधार जो,ममता रक्षित मीत॥

भातृ भाव सद्भाव जग,आलोकित नवप्रीत।
शान्ति सुखद मुख अस्मिता,परहित नित नवनीत॥

नव विहान समृद्धि का,मानव बन संवेद।
ममता समता शान्ति मन,बन सहिष्णु बिन भेद॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥