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चीन से हमारे रिश्तों की पड़ताल:विश्लेषणात्मक अध्ययन

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)

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गलवन में हमारे २० बहादुर जवानों के बलिदान ने समूचे देश को गुस्से से भर दिया है। इस घटना से हमारे राष्ट्रीय स्वाभिमान को चोट पहुंची है। अब भारत,चीन के दुस्साहस का जवाब कैसे देता है,यह न केवल हमारे लिए महत्वपूर्ण होगा,बल्कि विश्व व्यवस्था पर भी अपना प्रभाव छोड़ेगा। मौजूदा समय में हमारे पास ३ रणनीतिक विकल्प हैं। पहला-हम दृढ़ राष्ट्रीय संकल्प के साथ चीन का डटकर मुकाबला करने का निश्चय करें और युद्ध छोड़कर सभी उपलब्ध राजनीतिक एवं कूटनीतिक विकल्पों का उपयोग करें। दूसरा-हम अपने राष्ट्रीय स्वाभिमान की कीमत पर गैर-बराबरी वाले कथित दोस्ताना रिश्तों के झूले पर झूलते रहें और शांत बैठ जाएं। युद्ध में कूदने का तीसरा रास्ता २१वीं शताब्दी के इस परमाणु युग में हमारा अंतिम विकल्प ही हो सकता है। इससे पहले कि हम तीन विकल्पों में से कोई एक चुनें,कुछ मूलभूत बातें समझना आवश्यक है।`डोकलाम` से `गलवन` तक चीन की मंशा लगभग एक जैसी रही है। डोकलाम संकट के दौरान चेताया था कि डोकलाम भारत और बाकी दुनिया के प्रति चीन की नई नीति का सूचक है,क्योंकि शी चिनफिंग का लक्ष्य राष्ट्रवादी उन्माद के सहारे खुद को माओ के समकक्ष खड़ा करना है। चीन को अपनी अर्थव्यवस्था की तेजी बनाए रखने के लिए ऐसे दोस्ताना विकासशील बाजारों की जरूरत है,जहां उसके सरकारी बैंक बड़े पैमाने पर ऋण दे सकें।
चूंकि,विदेशी बाजारों में पैर पसारना चीन के आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है,इसलिए उसने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के जाल में तमाम अफ्रीकी और एशियाई देशों को फंसाया। बीते ३ वर्षों में चीन की इस पहल में शामिल देशों की संख्या १०० के करीब पहुंच गई है। इनमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल भी हैं। चीन की इस पहल से विकासशील देशों पर चीनी कर्ज का बोझ बढ़ा है और वे पूरी तरह उसके दबाव में आ गए हैं। चीन अपने अधिकांश पड़ोसियों को नाराज करने का भी कोई मौका नहीं छोड़ रहा है।
#चीन की चुनौती स्वीकार-
   वह दक्षिण चीन सागर में वियतनाम, मलेशिया,ब्रूनेई,इंडोनेशिया,फिलीपींस और हिमालय की चोटियों में भारत को ललकार रहा है। वह अपने पारंपरिक प्रतिद्वंद्वियों जापान और ताइवान की संप्रभुता पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा और दक्षिण कोरिया एवं ऑस्ट्रेलिया जैसे स्वतंत्र सोच वाले देशों से तकरार बढ़ा रहा है। इसका मकसद साफ है। चीन अब खुद को सबसे बड़ी वैश्विक ताकत के तौर पर देखता है और इसीलिए वह समय-समय पर संदेश देता है कि या तो उसकी शर्तों पर समझौता करो या चुनौती स्वीकार करो।
#अमेरिका व चीन के बीच नए शीत युद्ध की संभावना-
   अमेरिका और अन्य कई देश चीन के आक्रामक तेवरों पर गंभीर चिंता व्यक्त कर चुके हैं। अमेरिका चीन से व्यापार युद्ध लड़ रहा है और लगता है कि नए शीत युद्ध का बिगुल बजने को है। २०वीं शताब्दी के शीत युद्ध में भारत के पास तटस्थ रहने की गुंजाइश थी,लेकिन चीन का पड़ोसी होने के कारण हमें इस संभावित शीत युद्ध में न चाहते हुए भी बड़ी भूमिका निभानी होगी।
चीन की विस्तारवादी प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने एवं शक्ति संतुलन के लिए भारत को पहल करनी होगी। दुर्भाग्य से चीन जब अपने खतरनाक कदम बढ़ा रहा था,तब हमारी विदेश नीति में दूरगामी सोच का अभाव दिखा। घरेलू राजनीति के चलते इस दौर में विदेश नीति केवल पाकिस्तान के इर्द-गिर्द ही घूमती दिखाई दी। हम यह भूल गए कि पाकिस्तान चीन का पिट्ठू बन चुका है। इसकी गवाही चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा है जो खैबर दर्रे से शुरू होकर और गिलगिट-बाल्टिस्तान से होते हुए ग्वादर बंदरगाह पर खत्म होगा।
नि:संदेह भारत ने पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका से रिश्तों की गहराई बढ़ाई है, लेकिन इसका भी प्रयास किया है कि उसके साथ रिश्ते चीन से रिश्तों को प्रभावित न करें। अहमदाबाद में `नमस्ते ट्रम्प सभा हुई तो चिनफिंग भी वहीं झूला झूले,लेकिन अब चीन ने यह साबित कर दिया कि वह मित्रता की भाषा नहीं समझता। हमारी ढुल-मुल नीति के कारण पड़ोसी देशों के साथ हमारे रिश्ते बिगड़ते गए। अब नेपाल हमारे सदाबहार दोस्त की सूची में नहीं है । श्रीलंका और बांग्लादेश पर भी चीन का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है। म्यांमार के साथ अलग तरह की चुनौतियां है। भूटान दोस्त तो है पर उसकी अपनी मजबूरियां हैं। यह स्थिति विदेश नीति की सफलता की सूचक नहीं हो सकती। भारत जैसा देश अपने राष्ट्रीय स्वाभिमान और संप्रभुता से समझौता नहीं कर सकता।समय आ गया है कि राष्ट्रीय संकल्प और स्पष्ट दीर्घकालिक सोच के साथ हर मोर्चे पर चीन से मुकाबले की तैयारी की जाए। इसके लिए भावनाओं के ज्वार पर नहीं,बल्कि आर्थिक विकल्पों पर आधारित तार्किक एवं ठोस रणनीति की जरूरत है। चीन में बने टी.वी. और मोबाइल तोड़ने से हमारा लक्ष्य हासिल नहीं होगा।
जरूरी है कि हमारा नेतृत्व ऐसे ठोस रणनीतिक और सामरिक समाधान दे,जिससे चीन का मुगालता दूर हो और उसे सबक मिले कि शांति भंग करने की क्या कीमत हो सकती है ? सबसे पहले हमें अपने पास-पड़ोस में समर्थन को मजबूत करना होगा। हमें `क्वॉड` जैसी पहल को भी तेज करना होगा। भारत ने जापान,ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के साथ २००७ में क्वॉड की शुरुआत की थी। इसमें ज्यादा प्रगति नहीं हुई है।
हमें क्वॉड को `नाटो` की तरह सामूहिक रक्षा ढांचे पर संगठित करना होगा,जिसमें एक देश पर आक्रमण सभी देशों पर आक्रमण माना जाता है और सदस्य देशों की रक्षा करना सबकी जिम्मेदारी होती है। क्वॉड की सदस्यता भी बढ़ाई जानी चाहिए। वियतनाम इसमें शामिल होने का इच्छुक है।मलेशिया की भी इसमें दिलचस्पी हो सकती है।
भारत को जी-११ का सदस्य बनाने की अमेरिका की पहल का समर्थन करना चाहिए । साथ ही हमें इतिहास के पहिए को वापस घुमाते हुए इंदिरा युग की तरह रूस से रिश्तों को मजबूत करना चाहिए। इस चुनौतीपूर्ण समय में रूस के समर्थन की कमी सबसे ज्यादा महसूस हो रही है। रूस तेजी से बदलते वैश्विक परिदृश्य में महत्वपूर्ण आवाज होगा। भारत के अमेरिकी नेतृत्व वाले मंच में एक समर्पित सदस्य के रूप में शामिल होने की हिमायत नहीं कर रहा हूँ,बल्कि चीनी दुस्साहस को मात देने के लिए किसी दूसरी ताकत पर पूर्ण निर्भरता राष्ट्रहित में नहीं, लेकिन हम उन देशों का साथ लेने में परहेज कदापि न करें,जिनके हित हमारे हितों से मेल खाते हैं। भारत के पास एक ऐतिहासिक मौका है। वह २१वीं सदी में भू-राजनीतिक समीकरणों को संतुलन प्रदान करने वाली रणनीतिक पहल का नेतृत्व कर सकता है। इससे चीन पर हमारा दबाव बढ़ेगा।

परिचय-प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैL आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैL एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंL करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंL गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंL साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य  कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंL  राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।