राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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हम हर दशहरे पर
रावण का पुतला,
जोर-शोर से जलाते हैं
पटाखे फोड़ते हैं,
खुशियां मनाते हैं।
रावण ने सीता का हरण किया,
पर चीर-हरण नहीं किया
उसने सिया को अशोक वाटिका में रखा,
जोर-जबरदस्ती का व्यवहार न किया।
उसने सीता की ‘हाँ’ का इंतजार किया,
लेकिन ये कलयुगी सफेदपोश रावण…
चाहे सात साल की मासूम हो,
या तेरह साल की नाबालिग
या बीस-पच्चीस साल की बालिग,
या अस्सी साल की विधवा।
इनके जिस्म में एक नारकीय कीड़ा,
कुलबुलाता है
बलात्कार करते हैं,
आँखें फोड़ देते हैं
रीढ़ की हड्डी तोड़ देते हैं।
जान से मारते हैं,
जिंदा जला देते हैं
लेकिन अफसोस…
इन रावणों का कोई पुतला नहीं जलता,
सबूत के अभाव में यह छूट जाते हैं।
लचर न्याय प्रणाली चलती है सालों-साल,
इन्हें बेल मिल जाती है
राम के भेष में ये रावण,
अक्सर बिना सजा के छूट जाते हैं।
इस साल दशहरे पर,
इन्हीं रावणों के पुतले जलाइए
इनके अंदर के रावण को मार कर,
इन्हें राम बनाइए…
मगर काश!,
ऐसा हो पाता॥
परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।
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