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मोहन धरा उबारिये

बोधन राम निषाद ‘राज’ 
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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गोवर्धन धारण किये,इंद्र कोप से आप।
मोहन धरा उबारिये,कोरोना संताप॥

घूम रहा है दैत्य बन,देखो देश विदेश।
गिरधारी रक्षा करो,कोरोना है क्लेश॥

उथल-पुथल चहुँ ओर है,निराकार आकार।
महाकाल आगे खड़ा,आओ पालनहार॥

सुन्दर मुख घन श्याम का,तीनों लोक समाय।
मधुर मुरलियाँ जब बजे,प्रेम मगन हरषाय॥

जब-जब मुरली है बजे,गुंजित वन चहुँ ओर।
रम्भातें गइया सभी,पीछे माखनचोर॥

मधुरस ज्यों नवनीत है,अद्भुत मधु का वास।
ब्रज में मोहन राधिका,लिए स्वाद है खास॥

गिरिधर बनवारी बने,ब्रज में माखनचोर।
दूध दही खाते सभी,ग्वाल बाल चहुँ ओर॥

भाद्र पक्ष की अष्टमी,कृष्ण लिए अवतार।
दूर हुए विपदा सभी,हर्षित सब संसार॥

रवि तनया यमुना नदी,जहाँ कदम की डाल।
कृष्ण बजाते बाँसुरी,बैठ बाल गोपाल॥

निधिवन में विचरण करे,गइया के सब साथ।
माधव मुरली मुख सजे,लिए लकुटिया हाथ॥