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एक कदम अस्मिता की ओर जरूरी

अल्पा मेहता ‘एक एहसास’
राजकोट (गुजरात)
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खोयी हुई अस्मिता पाने
बरसों से जूझ रहा हूँ,
अपने ही इंडिया में
मैं खुद को खोज रहा हूँ,
ज़हर के घूंट पी-पी के
बद से बदतर काम कर रहा हूँ,
हाँ.. ‘डिजिटल इंडिया’ के कूड़े-कचरे को
पीढ़ियों से साफ कर रहा हूँ,
तकनीकी तो बहुत अपना रहे हैं,
करोड़ों खर्च कर रहे हैं।
हाँ,मगर अछूत वर्ग की दशा को,
नहीं भीतर हमारे झांक रहे हैं॥
‘भारत के विकासार्थी’ हर प्रांत का नक्शा बदलने चले हैं,हाँ फ़िर भी अछूत वर्ग अपने पूर्वजों के नक़्शे कदम पर मजबूरी में क्यों चल रहे हैं! क्या तकनीकी की जरुरत हमें नहीं है ? क्या हमारा विकास जरुरी नहीं है ? क्या हम देश के नागरिक नहीं हैं ?? क्या हम इंसान नहीं हैं ? क्या किसी में इंसानियत नहीं है ??
ये मानव जीवन प्रकृति की देन है। प्रकृति ने सभी को एक समान बनाया है। न किसी के लहू का रंग नीला,पीला या सफ़ेद है,सब मनुष्य के लहू का रंग लाल ही है। भूख, प्यास,गुस्सा,प्रेम,संवेदना ये इंसान के स्वाभाविक लक्षण हैं,और इंसान इनके आधार पर ही अपना दायित्व निभाते हैं। अपना कल,आज और कल का बिम्ब स्थापित करता है। भविष्य पिछले कल का प्रतिबिम्ब है,एवं आज एक दर्पण, जिसमें हम हमारे मुखौटे का रूप बड़ी सहजता से देख सकते हैं।
प्रकृति ने इन्सानों में कोई फर्क नहीं समझा,तभी एक विचार मन में सहज़ रूप से पैदा होता है कि, जब सभी समान हक़ के हक़दार हैं,अस्मिता के हक़दार हैं तो फिर पिछड़ा वर्ग कहाँ से स्थापित हुआ ? ऊँच-नीच जाति का पक्षपात कहाँ से पैदा हुआ ?? उनकी पछात वर्ग की दिशा किसने तय की,दक्षिण दिशा में उनका जन-जीवन किसने स्थापित किया… उनकी रहन सहन की सीमा किस समुदाय ने बाँधी..?? भद्र समाज में उनकी पहचान पछात रूप में क्यों हुई। समय चलता रहा,समय के साथ उनको उनकी नई-नई पहचान दी गईं। उनके घरों की पहचान भी दी गई कि वे छत नहीं डालेंगे। उनके रहन-सहन की भी पहचान बनाई गई,जैसे-वे अपने बच्चों को पढ़ाएंगे नहीं,साफ कपड़े नहीं पहनेंगे,घुटनों से नीचे धोती नहीं पहनेंगे,उनकी स्त्रियां आभूषण नहीं पहनेंगी,बारात में उनका दूल्हा घोड़ी पर नहीं चढ़ेगा। खाने-पीने की पहचान बनाई गई-घी नहीं खाएंगे,सिर्फ मोटा अनाज खाएंगे और जूठन खाएंगे। चलने-फिरने की पहचान बनाई गई,जीविका की भी पहचान बनाई गई कि,गन्दे काम करेंगे,मरे हुए जानवर उठाकर फेंकेंगे। कभी इन सभी प्रश्नों पर गौर करते हैं तो एक प्रश्न सामने आता है कि,ये असमानता की मान्यता किस समुदाय द्वारा गढ़ी हुई है..किस समुदाय ने मनुष्यों से मनुष्यों के बीच अलगाव पैदा किया,करोड़ों मनुष्य को इन सभी हक से प्रतिबंधित करके उन्हें अपवित्र,अछूत साबित किया। हमारे देश में जो असमानता पैदा करते हैं,उनके बारे में चर्चा आज तक क्यों नहीं हुई। जब एक बाजू मनुष्य चाँद तक पहुँच रहे हैं,मंगल ग्रह पर शोध कर रहे हैं,जहाँ इतनी उड़ान की कल्पना हो रही हो,उनके लिए करोड़ों रुपए खर्च करके अपने लक्ष्य को अंजाम देने के लिए रात एक कर रहे हैं,वहीं अभी भी एक वर्ग को अछूत वर्ग माना जाता है। उनको भद्र वर्ग के सारे हक से प्रतिबंधित किया हुआ होता है। अछूत वर्ग को अस्मिता से रूबरू कराने हेतु डॉ. आम्बेडकर ने कदम उठाया और इस वर्ग को दलित वर्ग घोषित किया हुआ है। समग्र हिन्दू नेताओं और धर्मध्वजियों के लिए ये बात महा विस्फोट साबित हुई थी। अछूत वर्ग को दलित वर्ग स्थापित करके उनको तीसरा पक्ष माना,उनको राजनीति में तीसरा पक्ष घोषित किया,उनको सन्मान,तमाम अधिकारों से सन्मुख कराया और तभी से दलित वर्ग की राजनीति का निर्माण हुआ। अछूत वर्ग अपनी अस्मिता से रूबरू हुए,उनकी पहचान को भद्र समाज में स्वीकृति मिलने तो लगी,पर स्वाभाविक तौर पर नहीं,क्योंकि अभी भी उच्च जाति के लोग दलित वर्ग को अपने समान नहीं समझते,वे आज भी इस वर्ग को पीछे धकेलने की बहुत कोशिश करते हैं,उनको इज्जत देने से कतराते हैं। दलित अस्मिता को संविधान द्वारा दिए गए आरक्षण को झुठलाते हैं,विरोध करते हैं,क्यों ? क्या उनके पूर्वजों ने जो मान्यता गढ़ी है,उसी तुच्छ नज़र से वो दलित वर्ग को देखना चाहते हैं…क्या उनकी पहचान वही रखना चाहते हैं..?? जब बात ‘डिजिटल इंडिया’ की हो रही है,जब पूरा देश डिजिटल वर्क का आदी बन बैठे हैं,हर एक काम के लिए तकनीकी का उपयोग हो रहा है,ऊँचे स्तर की जनता को ओर ऊपर जब ले जा रहे हैं तो निम्न कक्षा के लोगों का क्या कुसूर है ? भारत में अलग-अलग प्रांत में आज भी दलित वर्ग उन्हीं सब कार्यों में जुटे हुए हैं,जो बड़े-बड़े मल कुंड को रोज-बरोज साफ करते हैं,उनके बीच पूरा दिन काम करते हैं ओर उनकी पिछली पीढ़ियों से ये काम करते आए हैं। ये बद से बदतर जीवन जी रहे हैं,इनमें से ही संक्रमण से छोटी-छोटी उम्र में मृत्यु की संख्या बढ़ती जा रही है,तो इस वर्ग के लिए तकनीकी क्यों नहीं है ?? क्यों इस नर्क समान काम के लिए तकनीकी नहीं अपना रहे,जब करोड़ों रुपए को भारत के विकास लक्ष्य खर्च कर रहे हैं,तो क्या प्रत्येक नागरिक का विकास एक वर्ग जो अपने पूर्वजों से बदतर जिंदगी जीते आ रहे हैं। उनको उनकी हालत से बाहर निकालना विकास लक्षी कार्य नहीं है ?? अशिक्षित होना गुनाह है,क्या खुद को अछूत मान के ये काम स्वीकार करते हैं,ये ज़हर का घूंट नहीं पी रहे हैं ?? क्या डिजिटल इंडिया सिर्फ भद्र समाज के लिए है..??
भारत को विकासशील तभी बना पाएंगे,जब हर भारतीय नागरिक का जीवन बदलेगा,पूर्वजों द्वारा गढ़ी हुई मान्यता से उनको बाहर निकाला जाएगा, हर एक व्यक्ति की जीवन शैली में सुधार आएगा, तभी भारतीय सही मायने में विकासशील कहलाएगा ‘अंकीय भारतीय’ कहलाएगा।

परिचय-अल्पा मेहता का जन्म स्थल राजकोट (गुजरात)है। वर्तमान में राजकोट में ही बसेरा है। इनकी शिक्षा बी.कॉम. है। लेखन में ‘एक एहसास’ उपनाम से पहचान रखने वाली श्रीमती मेहता की लेखन प्रवृत्ति काव्य,वार्ता व आलेख है। आपकी किताब अल्पा ‘एहसास’ प्रकाशित हो चुकी है,तो कई रचना दैनिक अख़बार एवं पत्रिकाओं सहित अंतरजाल पर भी हैं। वर्ल्ड बुक ऑफ़ टेलेंट रिकॉर्ड सहित मोस्ट संवेदनशील कवियित्री,गोल्ड स्टार बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड एवं इंडि जीनियस वर्ल्ड रिकॉर्ड आदि सम्मान आपकी उपलब्धि हैं। आपको गायन का शौक है।

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