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तन्हा मन

ममता तिवारी
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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अकेलेपन में उभरती भीड़ शोर गुल,
साँस लेने साँस ढूंढते पकड़ते
फुर्सत भरे पल पँछी बन उड़े थे,
खड़ी आज झलक में झलकते
फुर्सत पँछी है दाने चुगतेl
नहीं चाहिए फुर्सत अकेलेपन के बदले,
शोर ऑफिस घर-बच्चे रिश्ते कहाँ गए
उम्र का पड़ाव व्यस्तता मांगता,
देखे तन्हाई के फन निकलते
बेदर्द सूनेपन को डसतेl
मन्नत दुआ प्रार्थनाएं सभी पूरे हुए,
शर्त उदास आँखों की प्रतीक्षा थी
सब देती,फिर वापस ले लेतीl
चिढ़ाती-सी मुँह पल सिमटते,
सूनी आँख पलक झपकतेll