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हो मुबारक ये प्यारी घड़ी

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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आ गया साल इक्कीसवाँ,
है सदी भी ये इक्कीसवीं।
उम्र को वक्त ने दे दिया,
हो मुबारक ये प्यारी घड़ी।
आ गया…

मेल ऐसा सदी बाद ही,
वक्त का हो सकेगा कभी।
खुशनसीबी हमारी यही,
मिल गया वक्त से जो अभी।
हम सभी की है किस्मत बड़ी,
हो मुबारक ये प्यारी घड़ीll
आ गया…

पीढ़ियां बीत जातीं मगर,
वक्त ऐसे न मिलता कभी।
मिल गया है ये हमको अगर,
तो कदर दें इसे हम सभी।
जी रहे इसमें ही हम सभी,
हो मुबारक ये प्यारी घड़ीll
आ गया…

प्यार से ही तो संसार है,
हर खुशी हो जहाँ प्यार है।
वक्त ने जो दिया है हमें,
इक सुहाना ये उपहार है।
चीज है प्यार से क्या बड़ी,
हो मुबारक ये प्यारी घड़ीll
आ गया…

परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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