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हम-तुम होते साथ

मधु मिश्रा
नुआपाड़ा(ओडिशा)
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काव्य संग्रह हम और तुम से

हम-तुम होते साथ तो होता..धरती का श्रृंगार..
सृष्टि के हर कण में जैसे..होता परस्पर प्यार…।
तुम धरा मैं बीज तभी तो..अंकुरित होता प्यार..
वृक्षों के होने से जैसे…आती है बसंत बहार…॥

तुम हो कागज़ मैं लेखनी..लिखेंगे भाव हम..
अकेले हों जज़्बात…तो कैसे कहेंगे हम…?
संग दीए के बाती हो तो..होता है प्रकाश..
अस्तित्व इनका अकेले में..होता नहीं है ख़ास…॥

तुम फूल मैं ख़ुशबू..अनोख़ा प्यार का बँधन..
जनम-जनम का साथ हमारा..है प्यार का संगम…।
सूनी होती है कलाई..बिन चूड़ी बिन कंगना..
मेरा तुम्हारा साथ प्रिये..तुलसी हो जैसे अंगना…॥

मैं तूलिका तुम रंग तभी तो..बनती है तस्वीर..
प्रेम और स्नेह होती है..परिवार की जागीर…।
मैं पंछी तुम गगन का..विस्तार भी है ज़रूरी..
तुमसे ही आशाएँ मेरी..सदैव ही होती पूरी…॥

तुम मोती-मैं माला साथ ही..लेते हैं आकार..
हमसे और तुमसे होता है..पूरा हर परिवार…।
हम और तुम का अस्तित्व है..नींव और इमारत..
बग़ैर कलमा के ख़ुदा की जैसे..पूरी नहीं इबादत…॥

रूठना और मनाना प्यार में..होता है ज़रूरी..
रुठे पिया मना लूँ मैं तो..तकरार होती पूरी…।
सूरज और चंदा से जैसे…गगन का हो श्रृंगार..
हम तुम जीवन नदिया के..नैया और पतवार…॥

परिचय-श्रीमती मधु मिश्रा का बसेरा ओडिशा के जिला नुआपाड़ा स्थित कोमना में स्थाई रुप से है। जन्म १२ मई १९६६ को रायपुर(छत्तीसगढ़) में हुआ है। हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती मिश्रा ने एम.ए. (समाज शास्त्र-प्रावीण्य सूची में प्रथम)एवं एम.फ़िल.(समाज शास्त्र)की शिक्षा पाई है। कार्य क्षेत्र में गृहिणी हैं। इनकी लेखन विधा-कहानी, कविता,हाइकु व आलेख है। अमेरिका सहित भारत के कई दैनिक समाचार पत्रों में कहानी,लघुकथा व लेखों का २००१ से सतत् प्रकाशन जारी है। लघुकथा संग्रह में भी आपकी लघु कथा शामिल है, तो वेब जाल पर भी प्रकाशित हैं। अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में विमल स्मृति सम्मान(तृतीय स्थान)प्राप्त श्रीमती मधु मिश्रा की रचनाएँ साझा काव्य संकलन-अभ्युदय,भाव स्पंदन एवं साझा उपन्यास-बरनाली और लघुकथा संग्रह-लघुकथा संगम में आई हैं। इनकी उपलब्धि-श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान,भाव भूषण,वीणापाणि सम्मान तथा मार्तंड सम्मान मिलना है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-अपने भावों को आकार देना है।पसन्दीदा लेखक-कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद,महादेवी वर्मा हैं तो प्रेरणापुंज-सदैव परिवार का प्रोत्साहन रहा है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी मेरी मातृभाषा है,और मुझे लगता है कि मैं हिन्दी में सहजता से अपने भाव व्यक्त कर सकती हूँ,जबकि भारत को हिन्दुस्तान भी कहा जाता है,तो आवश्यकता है कि अधिकांश लोग हिन्दी में अपने भाव व्यक्त करें। अपने देश पर हमें गर्व होना चाहिए।”

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