मिथिलेश बड़गैंयाँ
जबलपुर(मध्यप्रदेश)
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काव्य संग्रह हम और तुम से…
मानो कोई सखी पुरानी,
आ जाए मन की बतियानेl
साँझ ढले फिर याद तुम्हारी,
आकर बैठ गयी सिरहानेll
यादों की बारात देखकर
एकाकीपन नहीं ठहरता,
झिलमिल तारों की चुनर ले
नीलगगन से चाँद उतरताl
मुझे एकटक तकता रहता,
मुझसे मेरा रूप चुराने…l
दिवस मिलन के बड़े सुखद थे
बातें होती थीं दिन-रैन,
पंख लगाकर गुजर गए जो
ले गए मेरे मन का चैनl
सपनों में यादों की डोरी,
जुड़ जाती तुमसे अनजाने…।
पंछी नदिया और हवा को
सीमाएँ कब टोका करतीं,
दुनियाभर की रस्में-कसमें
प्रेम-पथिक को रोका करतींl
काश! प्रिये मैं नदिया बन कर,
आ पाती तुझमें मिल जाने…।
साँझ ढले…॥