डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली)
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देश का वह बजट आदर्श बजट होगा,जो देश के सभी १४० करोड़ लोगों के लिए रोटी,कपड़ा,मकान,शिक्षा और चिकित्सा की न्यूनतम व्यवस्था तो करे। राष्ट्र को परिवार बना दे। इस कसौटी पर किसी भी बजट का खरा उतरना तभी संभव है,जबकि देश के शीर्ष नेताओं के दिल में ऐसा प्रबल संकल्प हो और उन्हें आर्थिक मामलों की गहरी समझ भी हो लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वर्तमान परिस्थितियों में ऐसा बजट पेश किया है,जिसका छिद्रान्वेषण तो कई आधार पर किया जा सकता है। परंतु यह तो मानना ही पड़ेगा कि इस बार उन्होंने ऐसे कोई प्रावधान नहीं किए हैं,जो हर बजट में कमोबेश किए ही जाते हैं। जैसे आयकर,संपत्ति कर,कोरोना कर तथा अन्य कई छोटे-मोटे कर न उन्होंने बढ़ाए हैं और न ही घटाए हैं। देश के ६-७ करोड़ आयकरदाता यह जरुर सोचते थे कि इस बार कर घटेगा ताकि लोगों के हाथ में खर्च के लिए पैसा बढ़ेगा। यदि चीजों की मांग बढ़ेगी तो उत्पादन भी बढ़ेगा। गनीमत है कि इस बजट में नए कर नहीं थोपे गए हैं। सरकार इस वर्ष के लगभग ३५ लाख करोड़ रु. के खर्च को कैसे जुटाएगी ? वह सरकारी ज़मीनों,कारखानों,वित्तीय संगठनों,सरकारी कंपनियों वगैरह को बेचेगी। २ सरकारी बैंक भी जाएंगे। विपक्षी नेता इसे ‘देश को बेचना’ कह रहे हैं,लेकिन वास्तव में वे ही संगठन बेचे जाएंगे,जो निकम्मे हैं,नुकसानदेह हैं और जिन्हें चलाने में सरकार असमर्थ है। बीमा कंपनियों में वह विदेशी पूंजी को ७४ प्रतिशत विनिवेश होने देगी। सरकार यह सब नहीं करती और आम नागरिकों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष करों की बौछार कर देती तो क्या ठीक होता ? यह ठीक है कि सड़क-निर्माण और रेल्वे में वह ज्यादा पूंजी लगाएगी। उससे रोजगार बढ़ेंगे,लेकिन देश के साल भर में एक-डेढ़ करोड़ बेरोजगार हुए लोगों का पेट कैसे भरेगा ? ‘मनरेगा’ की प्रति व्यक्ति मजदूरी की राशि में कोई बढ़ोत्तरी नहीं है लेकिन उसका खर्च भी १.१५ लाख करोड़ से घटाकर ७३००० करोड़ रु. कर दिया गया है। इसी तरह प्र.मं. आवास योजना का खर्च ४०५०० करोड़ से २७५०० करोड़ रु. और किसान सहायता भी ७५००० करोड़ से घटकर अब ६५००० करोड़ रु. रह गया है। बैंकों,रेल्वे,सड़कों,पुलों,कंपनियों आदि के निजीकरण के बाद उनकी सेवाओं और चीजों के दाम जरुर बढ़ेंगे। जब तक सरकार ‘दाम बांधो’ नीति लागू नहीं करेगी,आम उपभोक्ता ठगा जैसा रहेगा। अभी शेयर मार्केट जैसी छलांगें भर रहा है,क्या वह लोगों की कंजूसी नहीं बढ़ाएगा ताकि वे अपने खर्च घटाएं और पैसा शेयरों में लगाएं ? स्वास्थ्य सेवा के बजट में वृद्धि सराहनीय है लेकिन गाँवों और कस्बों में बसे लोगों को कोरोना के बाद इसका कितना लाभ मिलेगा,यह समय ही बताएगा। इस बजट से खेती कितनी बढ़ेगी,यह भी अनुमान का विषय है। कुल मिलाकर बजट अच्छा है लेकिन इसे क्रांतिकारी या ऐतिहासिक या असाधारण कहना ज़रा कठिन है।
परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।