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अधूरी आजादी

नीलू चौधरी
बेगूसराय (बिहार)
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सालों पहले हम आजाद हुए,
पर हमें मिली कहाँ पूरी आजादी ?
अभी तक हम जी रहे,
अधूरी आजादी के साथ…।

आजादी के जश्न पर,
कुछ चटकता है हमारे भीतर
शायद ये अधूरी मिली आजादी का
संकेत है,
तब तक हमारी आजादी अधूरी रहेगी
जब तक इस वतन की जमीं पर,
भूखे पेट,क्लांत मुख और
टूटे सपनों के साथ जीते रहेंगे,
असहाय लोग।

हमारी आजादी अधूरी रहेगी…
जब तक स्कूल से घर नहीं लौट आए,
बच्चों की माएँ रहेंगी ख़ौफ़ज़दा किसी
अनहोनी की आशंका से…।

हमारी आजादी अधूरी रहेगी…
जब तक कर्ज में डूबा किसान,
सयानी होती बेटियों के डर से
देता रहेगा अपनी जान…
जब तक अपनी माँगों के लिए,
प्रजा को महीनों करना पड़ेगा
प्रदर्शन…।

हमारी आज़ादी अधूरी रहेगी…
जब तक हमारी बेटियाँ होती रहेंगी,
दरिंदगी का शिकार…
जब तक उनकी चीखें यूँ ही
जाएँगी बेकार…,
जब तक उन्हें सिर्फ और सिर्फ
इंसान नहीं माना जाएगा,
जब तक नारी अस्मिता की रक्षा के लिए
अदालत के दरवाजे खटखटाते रहने पड़ेंगे…।

हमारी आजादी अधूरी रहेगी…
जब तक पढ़े-लिखे बेरोजगारों की,
लंबी लाइनें खड़ी रहेंगी…
जब तक ऑफिस के बाबू,
बिना पैसे फ़ाइलों को रोके रहेंगे
जब तक सिस्टम का शिकार
कोई लाचार,
चुप और सहमा रहेगा…।

हमारी आजादी अधूरी रहेगी…
जब तक कवियों की कविताएँ,
अक्षम रहेंगी नफ़रतों को
मिटाने में…
जब तक कलमों पर चाटुकारिता का,
असर दिखेगा
जब तक हमारी सच बयानी पर,
नंगी तलवारें लटकती रहेंगी।
तब तक,
हाँ,तब तक…
हमारी आजादी अधूरी रहेगी…॥

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