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तुम केन्द्र हो,हम धुरी

सुरेन्द्र सिंह राजपूत हमसफ़र
देवास (मध्यप्रदेश)
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महिला दिवस स्पर्धा विशेष……

दफ़्तर से घर लौटते ही रमेश निढाल होकर पलँग पर पड़ गया,आज उसके चेहरे पर बहुत ज़्यादा उदासी और थकान के भाव थे। पत्नी आशा ने पूछा -‘क्या बात है ? सब ठीक तो है न ? आप बहुत उदास और थके हुए से लग रहे हैं। आप हाथ-मुँह धोकर आईए,मैं चाय लेकर आती हूँ।’ आशा चाय बनाकर ले आई लेकिन रमेश उसी हालत में मिला। आशा ने फिर पूछा,-‘क्या बात है जी! आज आप इतने ख़ामोश और उदास क्यों हैं ?
रमेश ने ख़ामोशी तोड़ते हुए कहा,-‘आज फिर निकिता के विद्यालय से फोन आया कि यदि आपने १० तारीख़ तक फीस नहीं भरी तो निकिता को परीक्षा में नहीं बैठा सकेंगे। समझ नहीं आ रहा कि फीस की व्यवस्था कैसे करूँ ? पहले ही हम २ बार का समय मांग चुके हैं। अम्मा का ईलाज भी करवाना ज़रूरी था। छोटी-सी तनख़्वाह में ये सब कैसे प्रबंध हो ?
आशा ने आशा बंधाते हुए कहा,-‘आप हाथ-मुँह धोकर चाय पीजिए,भगवान कहीं न कहीं से व्यवस्था करेंगे।’
रमेश बोला-‘तुम तो ऐसे कह रही हो,जैसे भगवान छप्पर फाड़कर हमारे घर में फीस के पैसे गिरा देंगे!’ आशा बोली-‘भगवान पर भरोसा हो,तो सब सम्भव हो जाता है। आप हाथ-मुँह धोकर आईए,मैं भगवान से फीस के पैसे मांगती हूँ।’
रमेश को आशा की बात में कुछ आशा नज़र आई।वह हाथ-मुँह धोकर आया,इधर आशा चाय के साथ कुछ रुपए लेकर आई।
‘आप गिनकर देखिए,थोड़े बहुत कम होंगे या पूरे भी हो सकते हैं।
रमेश ने पूछा-‘तुमने इतने पैसे कैसे इकट्ठे किए ? आशा बोली-‘ये पिछले २ साल से रक्षाबंधन में आए पैसे और कुछ सब्जी-भाजी के पैसों से बचत कर मैंने ये पैसे जोड़े हैं और फिर निकिता को पढ़ाने के लिए तो मेरे ज़ेवर भी बिक जाएं तो गम नहीं। एक ही तो बेटी है हमारी। मुझे देखिए,मैं बाबूजी की मज़बूरी के कारण पाँचवी से आगे नहीं पढ़ पाई थी, लेकिन अपनी बेटी के साथ ऐसा नहीं होने दूँगी, आजकल शिक्षा का युग है।’
रमेश ने पैसे गिनकर देखे तो ११८०० रुपए थे,और उसे १०६०० रुपए निकिता की फीस में भरना थे। रमेश के चेहरे की उदासी दूर हो चुकी थी। उसने तत्काल बाहर लगे गमले से एक गुलाब तोड़ा और आशा को भेंट करते हुए कहा-‘आज ‘महिला दिवस’ है और मैं एक पत्नी का नहीं,बल्कि उस नारी का सम्मान करना चाहता हूँ जो अपने कर्म के प्रति, अपने धर्म के प्रति और अपने बच्चों की शिक्षा और संस्कार के प्रति अपनी जिम्मेदारी को हँसते हुए निभा रही है।
रमेश बड़े गर्व से कह रहा था,-‘आशा तुम केन्द्र हो और हम धुरी…।’ अपने पति से इतना प्यार और सम्मान पाकर आशा की आँखें ख़ुशी के आँसू से भीग रही थी।

परिचय-सुरेन्द्र सिंह राजपूत का साहित्यिक उपनाम ‘हमसफ़र’ है। २६ सितम्बर १९६४ को सीहोर (मध्यप्रदेश) में आपका जन्म हुआ है। वर्तमान में मक्सी रोड देवास (मध्यप्रदेश) स्थित आवास नगर में स्थाई रूप से बसे हुए हैं। भाषा ज्ञान हिन्दी का रखते हैं। मध्यप्रदेश के वासी श्री राजपूत की शिक्षा-बी.कॉम. एवं तकनीकी शिक्षा(आई.टी.आई.) है।कार्यक्षेत्र-शासकीय नौकरी (उज्जैन) है। सामाजिक गतिविधि में देवास में कुछ संस्थाओं में पद का निर्वहन कर रहे हैं। आप राष्ट्र चिन्तन एवं देशहित में काव्य लेखन सहित महाविद्यालय में विद्यार्थियों को सद्कार्यों के लिए प्रेरित-उत्साहित करते हैं। लेखन विधा-व्यंग्य,गीत,लेख,मुक्तक तथा लघुकथा है। १० साझा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है तो अनेक रचनाओं का प्रकाशन पत्र-पत्रिकाओं में भी जारी है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अनेक साहित्य संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। इसमें मुख्य-डॉ.कविता किरण सम्मान-२०१६, ‘आगमन’ सम्मान-२०१५,स्वतंत्र सम्मान-२०१७ और साहित्य सृजन सम्मान-२०१८( नेपाल)हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्य लेखन से प्राप्त अनेक सम्मान,आकाशवाणी इन्दौर पर रचना पाठ व न्यूज़ चैनल पर प्रसारित ‘कवि दरबार’ में प्रस्तुति है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और राष्ट्र की प्रगति यानि ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद, मैथिलीशरण गुप्त,सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ एवं कवि गोपालदास ‘नीरज’ हैं। प्रेरणा पुंज-सर्वप्रथम माँ वीणा वादिनी की कृपा और डॉ.कविता किरण,शशिकान्त यादव सहित अनेक क़लमकार हैं। विशेषज्ञता-सरल,सहज राष्ट्र के लिए समर्पित और अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिये जुनूनी हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
“माँ और मातृभूमि स्वर्ग से बढ़कर होती है,हमें अपनी मातृभाषा हिन्दी और मातृभूमि भारत के लिए तन-मन-धन से सपर्पित रहना चाहिए।”