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भूलना मत अपने निज धर्म को

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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जब तक मनुष्य अपने हृदय से धर्म-कर्म नहीं करता,
तब तक मनुष्य को जीवन में शान्ति नहीं मिलती।

चार दिनों की यह जिंदगी,कि अजीब है पहेली,
जैसे मन की बातें,हँस के-रो के कहती है दो सहेली।

क्यों करते हो हे मानव तुम,धन के लिए लड़ाई,
क्यों लहू के प्यासा बने हो,आपस में भाई-भाई।

दुःख आए तो भूलना मत,अपने निज धर्म को,
क्रोध की अग्नि में जलाना मत सत्य कर्म को।

दुःख आया है,आने दो,सुख भी तो कभी आएगा,
तेरे संग जो किया है छल,वह खुद ही पछताएगा।

देने वाले तो देते हीं हैं,जिसकी हो जैसी ही है कमाई,
पर मनुष्य भूल जाता है कि दुःख-सुख दोनों है भाई।

मानव अपने मन में सन्तोष की भाषा सीख पाता तो,
धर्म-कर्म सत्पथ की राहों पर सदा ही चल पाता तो।

जीवन में मुक्ति मिल ही जाती प्रेम का गीत गाता तो,
घर द्वार पवित्र हो जाता है,यदि संत द्वारे आता तो।

संतों के ही दर्शनों में,भगवान् का दर्शन होता है,
हरि संत के दर्शन छोड़ मानव धन के लिए रोता है।

शंख की ध्वनि से भी शुभ सन्देशा यही मिलता है,
जैसा कर्म करेगा,यम के खाते में अंकित होता है॥

परिचय-श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।

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