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नेता का यही गुण

एस.के.कपूर ‘श्री हंस’
बरेली(उत्तरप्रदेश)
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कभी शोला कभी शबनम नेता का यही गुण है,
सुबह प्रसाद रात में रम,नेता का यही गुण है।
कथन-करनी के अंतर का उदाहरण हैं नेता-
पैसे की बरसात झमाझम,नेता का यही गुण है॥

कभी नरम और कभी गरम,नेता का यही गुण है,
कब क्यों कैसे आँखें नम,नेता का यही गुण है।
नेता खुद नहीं कह पाता कि,आगे क्या करेगा वह-
हर बार दिखाना अपना दम,नेता का यही गुण है॥

मैं शब्द ऊपर,नहीं शब्द हम नेता का यही गुण है,
मैं किसी से नहीं हूँ कम,नेता का यही गुण है।
चोट से वोट और वोट से चोट,यह काम है रोज़ का-
कभी करते नहीं कोई शरम,नेता का यही गुण है।

कभी हमराज़ कभी हमदम,नेता का यही गुण है,
कभी जनता को कर दे बेदम,नेता का यही गुण है।
कितने चेहरे और कितने रंग,उसको भी मालूम नहीं-
कब किस पे क्यों रहमो-करम,नेता का यही गुण है॥

कभी दुश्मन और कभी सनम,नेता का यही गुण है,
गिरगिट-सा रंग बदले हरदम,नेता का यही गुण है।
आग पर रोटी,रोटी पर आग,जैसी समय की मांग हो-
करे दुनिया का हर करम,नेता का यही गुण है॥