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मैं हूँ संस्कार

राजू महतो ‘राजूराज झारखण्डी’
धनबाद (झारखण्ड) 
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मैं हूँ संस्कार,
हम जैसे हैं
वैसे ही रहेंगे,
करता जैसा काम,
वैसे ही करेंगे।
सोचना है तुम्हें,
सामंजस्य कैसे करोगे
मेरे साथ कैसे चलोगे,
चलना होगा साथ मेरे
कहना तुम कैसे मानोगे।
मानना होगा कहना,
जैसा मानवता कहेगी
मेरे आदर्शों के साथ,
तुझे चलना होगा
सारा संघर्ष समझ,
तभी निर्णय कर
मेरे संग चलना होगा।
अगर है परेशानी,
करोगे मनमानी
फिर हो स्वतंत्र,
करने हेतु काम
अलग रहे मेरा नाम।
ना मैं रोकूँगा,
ना मैं टोकूँगा
ना ही सोचूँगा,
मैं भी अपने में,
तू भी अपने में
ना कोई हस्तक्षेप,
ना ही परिप्रेक्ष्य।
जब हो कहीं जाना,
जब मन हो आना
मिले हर बंदिश से,
तुझे अब आजादी
चाहे बातों से लो,
या लो नियमों से।
होगी इच्छा पूरी,
नहीं कोई मजबूरी
सोचना तुम जरूर,
क्या है मंजूर।
मेरे संग थे जब तक,
शान्ति थी तब तक
गुरु का सम्मान था,
माता-पिता का मान था।
मनुष्यों में ईमान था,
भाई-भाई में प्यार था
रंग-रूप में अनेकता,
पर सबमें थी एकता।
मन में दया-प्यार,
जीवन में उपकार
ऐसा था सरोकार।
जबसे मुझे गए भूल,
शान्ति प्रेम गया धुल
सर्वत्र साधन है भरमार,
फिर भी लोग हैं बीमार।
कर मुझे पुनः स्वीकार,
मैं हूँ संस्कार,मैं हूँ संस्कार….॥

परिचय–साहित्यिक नाम `राजूराज झारखण्डी` से पहचाने जाने वाले राजू महतो का निवास झारखण्ड राज्य के जिला धनबाद स्थित गाँव- लोहापिटटी में हैL जन्मतारीख १० मई १९७६ और जन्म स्थान धनबाद हैL भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखने वाले श्री महतो ने स्नातक सहित एलीमेंट्री एजुकेशन(डिप्लोमा)की शिक्षा प्राप्त की हैL साहित्य अलंकार की उपाधि भी हासिल हैL आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी(विद्यालय में शिक्षक) हैL सामाजिक गतिविधि में आप सामान्य जनकल्याण के कार्य करते हैंL लेखन विधा-कविता एवं लेख हैL इनकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ देशभक्ति भावना को विकसित करना हैL पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचन्द जी हैंL विशेषज्ञता-पढ़ाना एवं कविता लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे देश का एक अभिन्न अंग है। यह राष्ट्रभाषा के साथ-साथ हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसका विकास हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए अति आवश्यक है।