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घोंसले

डॉ.मधु आंधीवाल
अलीगढ़(उत्तर प्रदेश)
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पर्यावरण दिवस विशेष…..

नमिता खिड़की में बहुत देर से उदास खड़ी हुई थी। आज के बाद अब सुबह का चिड़ियाओं का चहकना,कबूतरों की गुटरगूं और काम वाली काकी की झुंझलाहट-अरे कितनी भी सफाई करूं,ये चिड़िया और कबूतर कितनी गन्दगी करते हैं। अब सब पेड़ और हरियाली चली जाएगी। कल से यहाँ दीवार लगेगी। घर का बंटवारा,दिलों का और सम्बन्धों का भी बंटवारा।
नमिता और अमन दोनों बहुत ही समझदार थे। अमन के पिताजी ने २ शादियाँ की थी। दूसरी पत्नी से दो बेटे थे,पर अमन ने कभी सौतेला नहीं समझा। दोनों भाईयों को बहुत प्यार करता था। पिताजी भी सारी जिम्मेदारी छोड़कर संसार से विदा हो गए,पर जैसे ही दोनों की शादी हुई,एक महाभारत शुरु हो गई,जिसका निर्णय केवल बंटवारा था। खुली जगह,जिसे कभी अमन की मम्मी ने बड़े चाव से बगिया का रूप दिया था,वह दोनों भाईयों के हिस्से में आई और वहाँ निर्माण शुरु होने लगा।
कल पेड़ ही कट जाएगा,जैसे उसका परिवार उससे कट गया। मन दुखी था,आँसू बह रहे थे। अमन बहुत देर से आवाज दे रहा था। वह नमिता के पास आया,उसे प्यार से समझाया-आओ तुम मेरे साथ चलो।
नमिता ने बाहर आकर देखा,अमन ने थोड़ा-सा कच्चा कोना उसके हिस्से में आ रहा था,उसमें एक गड्ढा करा दिया था और बहुत से गमले ले आया। ऊपर छजली पर दूर-दूर बाजार के बने घोंसले लगा दिए। नमिता को अमन पर बहुत प्यार आया,क्योंकि नीम का पौधा रखा था और गमलों के लिए गुलाब रजनीगंधा आदि के पौधे थे। उसने जल्दी से नीम लगाया और बोली-चलो अब हम सासू माँ की तरह इसको बढा़ करेंगे और इनको कोई नहीं बांटेगा।